Book Title: Patli Putra ka Itihas
Author(s): Suryamalla Maharaj
Publisher: Shree Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ __ ( ३१ ) मुद्राका अधिकारी हो सकता हूं ?" ___ राजाने स्कूल मद्रको बुलवाकर उसे प्रधान मन्त्रीको मुद्रा देनेको कहा। स्थल भद्र भी विचार कर उत्तर देनेको प्रतिज्ञा कर लौट आये और एकान्तमें बैठकर विचारने लगे। उस समय अकस्मात् उन्हे वैराग्य आ गया। मन्त्री पदकी कौन कडे, उन्हे भूपतिका पद भी दुःखदायी दिखने लगा। सारा संसार दु:बसे मरा है। इसलिये अब आत्मोद्धारका प्रयत्न करना चाहिये। ऐसा विचार कर स्थूलभद्रजीने वहाँ बैठे-ही गैठे सिरके केशोंका लोय कर डाला। और उनके पास जा रत्न-कम्मल था, उसे बोल उसकी रस्सियोंस ( मोघा) रजोहरण बना लिया। इसी वेशसे राज-समामें जाकर उन्होंने राजासे कहा,- 'मैने लोच कर लिया है" यह कहकर और राजाको (धर्म लाम) भासारवाद देकर स्थूलभद्र राजसमासे चलेगये। विरक्तसे परिपूर्ण हो, महात्मा स्थलभद्रने श्रीसंभूति विजयजी भाचार्यके पास जाकर सामायक पारन कर विधि पूर्वक दीक्षा ग्रहण कर ली। वे उसी दिनसे निरति बार चारित्रका पालन करते हुए विचरने लगे। एक दिन कई साधुमाने भावार्य महाराजके पास भाकर पातुर्मास व्यतीत करनेके विषय में मानी-अपनी इच्छा प्रकट की। डिसीने कहा कि मैं चार मासतक माहारका त्याग कर कायो. रसर्ग ध्यानसे सिंहकी गुफाके दरवाजे पर चातुर्मास व्यतीत करना चाहता है। किसीने कहा कि मैं तिलिस विलपर मौर विसीने मेरो भासनसे कुएं की मनपरहकर बातुर्मास Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68