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( १८ ) आपकी सहायता हो, तो मैं उदायीको ख़ाक में मिला दूं। यह सुनकर उज्जनका राजा बहुत प्रसन्न हुआ और उस राजपुत्रसे कहा,-कि यदि तू यह काम कर सके, तो फिर पूछना ही क्या है? किन्तु मेरी समझमें तो यह बिल्कुल असम्भव है। क्योंकि ऐसा कौन है, जो राजा उदायोके प्रजापाजलमें अपने आप शरीर... रूप तृणकी आहुति देनेका साहस करे ? तो भी यदि तू कहता है, तो मैं तेरी सहायता करनेको हर प्रकारसे बैयार हैं। इस प्रकार वह राज-पुत्र उज्जैनाधिपतिकी अनुमति पाकर पाटलि. पुत्रनगरमें आकर उदायी राजाके यहाँ (भृत्य) नौकरीका काम करने लगा । जबसे उसने नौकरी करनी शुरू की,तभीसे वह बरा-- बर अपने (अभीष्ट)मनो इच्छाकी सिद्धिकी चेष्टा करता रहा, किन्तु राजा उदायीको एकान्तमें पाना तो दूर रहा, उनके दर्शन भी नहीं हुए। अन्तमें जब इस प्रकारसं अपना मनोरथ पूर्ण होते न देखा, तब उसने दूसरे उपायका अवलम्बन किया। उसने देखा कि राजाके अन्तःपुरमें आने जानेके लिये जैन मुनियाँको कोई रुकावट नहीं है। अतएव उस धूर्त राज-पुत्रने अन्दर प्रवेश करनेके लिये जैन साधुओंके स्वामी आचार्य महाराजके पास जाकर बड़ाही भक्ति-वैराग्य दिखाकर दीक्षा ग्रहण की। राजाउदायी अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्वतिथियों में पोषध ब्रत किया करते थे। और उस दिन माचार्य महाराज उदायीवो धर्म सुनाया करतेथे । एक दिन राजा उदायीने पौषध किया था। भाचार्य महाराजने सन्ध्याके समय राज-पुरीमें जानेका विचार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com