Book Title: Patli Putra ka Itihas
Author(s): Suryamalla Maharaj
Publisher: Shree Sangh

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Page 38
________________ ( २२ ) राजानन्द तथा उनके मन्त्री कल्पकका विवरणा । राजा उदायीके स्वर्गारोहण करनेके बाद न तो उनके कोई सन्तान थो, न कोई निकट सम्बन्धी हो था, जो उनका उत्तरावि-कारी बनाया जाता; अतएव राज्य कायम रखनेके लिये पाँत्र दिव्य राजकुलमें फिराये। पंच दिव्य इन्हें कहते हैं:- पद हस्ती प्रधान अश्व, जलकुम्भ, छत्र और नामर । (उस समयकी यह प्रभा थी, कि जब कभी ऐसी सन्देह युक्त टेढी समस्या उपस्थित होती तब पाँच दिव्य छोड़े जाते और वे दिव्य यस्तुएँ जिसे स्वीकार करतीं, उसीको यह कार्य भार सौंपा जाता था । इसी नियम के अनुसार पांच दिव्य फिराये गये थे । ) ज्योंही वे नगर में फिर रहे थे, त्योंही वे सामनेसे पालकी में बैठा हुआ एक मनुष्य आता दिखाई दिया। उसे देखकर पद दस्तीने उसके मस्तककोजलपूर्णकुम्भ से अभिषेक किया और सूँड़से उठाकर उसे अपने मस्तकपर बैठा लिया । और दिव्योंने भी अपना-अपना कार्य 'दिखलाकर उसे स्वीकार किया। जैन शास्त्र के अनुसार यह भाग्यवानू पुरुष वेश्या की कुक्षिसे जन्मा हुआ नापितका पुत्र था और इसका नाम नन्द था । उसने एक दिन स्वप्न में पाटलिपुत्र नगरको अपनी आँखों से (वेष्ठित) लिपटा हुआ देखा | नींद खुलने 1 पर वह स्वप्नोंपाध्याके पास गया और स्वप्नके विषयमें पूछा । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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