Book Title: Patli Putra ka Itihas
Author(s): Suryamalla Maharaj
Publisher: Shree Sangh

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Page 39
________________ ( २३ ) उपाध्वारने उस उत्तम स्वप्नका वृत्तान्त सुन बड़ी प्रीति पूर्वक नन्दको मपनी लड़की ब्याह दो और उसने लयामरणांसे अलं. हा करके पालकीमें ठाकर, नगर-यात्रा करानेके लिये निकाला ज्या, किदियोंसे मुलाकात हो गयी। (किन्तु भन्यान्य शास्त्रोक मनसे नन्द शुद्ध क्षत्रिय वंशका गजा था। ) पश्चरन दिग्योंक स्वीकार कर लेनेपर मन्त्रियों तथा नगर वासी महापुरुषोंने मिल र सानन्द मन्द' को महोत्सव पूर्वक राज्याभिषेक किया। भगवान् महावीर स्वामी के निर्वाणसे ६० वर्ष बाद राजा उदायीकी राजधानीका मालिक यह पहला नन्द हुआ। उसी नगरमें कपिल नामका एक ब्राह्मण रहता था, उसके एक वालक पैदा हुआ। नाम संस्कार दिन कपिलने माने पुषका नाम कल्पक रखा। जब वह बालक विद्याभ्यास करने के योग्य दुमा, नर कपिलने उसे विद्याभ्यास कराना शुरू किया। प्रज्ञावान् होनेसे पल्पक थोड़ेही समयमें शाला तथा दक्ष हो गया कलाकबग्नसे ही जितेन्द्रिय मोर नेकनियत था। जतएर सर्वसाधारण मनुष्यों को दूष्टि में यह प्रामाणिक गिना जाता था। कुछ दिन बाद माता-गि स्वर्गवास रोनेपर कलाक सब प्रकारले स्वान्त्र हो गया। उस समय पारलिपुत्र में यह के समान विद्वान् गुणवान मोर पस दूसरा कोई न था। इस. लिये वह समस्त नगरवासियोन पूज्यपा। एक दिन राजा ममने की बड़ी प्रशंसा सुनो। मतपत रामाने पस्थित और विमान समझकर कलाकको राम-समाने पुलावा त्या Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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