Book Title: Patli Putra ka Itihas
Author(s): Suryamalla Maharaj
Publisher: Shree Sangh

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Page 32
________________ ( १६. ) समय ही गंगाकी भेंट कर दो। यह सोचकर उन लोगोने आचाय महाराजको गंगा में फेंक दिया । उस समय जलके भीतर एक -ली खड़ी हो गयी और उसपर आचार्य महाराजका शरीर लटक गया । आवार्य महाराज शरीरकी चिन्ता छोड़, ( क्षपक श्रेणी क्षमा मात्र ) पर आरूढ़ हो गये । और ( अन्तकृत ) अन्त केवल - ज्ञान लाभ करके शुक्ल ध्यानमें स्थित हो निर्वाणको प्राप्त हो गये । अग्निका पुत्राचार्यका शरीर जल जन्तुओंने छिन्न-भिन्न कर दिया और उनकी खोपड़ी जल-प्रवाहसे बहती हुई गंगा के किनारे आ लगी । एक दिन दैवयोगसे उस खोपड़ीके अन्दर पाटलि वृक्षका बीज आ पड़ा और वह बीज खोपड़ी के अन्दर ही अंकुरित हो गया । आज वही वृक्ष इस विशालताको प्राप्त हो गया है, जिसे देखते ही मनुष्यों का चित्ताकर्षित होता है तथा केवल ज्ञानी महात्माकी • खोपडीमें उगने से यह वृक्ष बड़ा पवित्र है । इसलिये यहाँ नगर बसाओ। आपको सब प्रकारसे कुशलता और समृद्धी प्राप्त होगी इस (उपाख्यान) कथाको सुनकर राजाने बड़े हर्ष के साथ नैमित्तिकों का कहना मंजूर किया। और उन्हें मान दान देकर सभासे विदा किया। इसके बाद शीघ्रही नौकरोंको उस जगह नगर बसाने योग्य ज़मीन नाप ठीक करनेकी आज्ञा दी। उन्होंने नौकरोंको अच्छी तरह समझा दिया, कि ज़मीन इस तरह ठीक करो, कि जिसमें वह पाटलि-वृक्ष नगरके ठीक बीचोबीचमें भा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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