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देखा न गया, तब उसने किसी जैन साध्वीसे दीक्षा ग्रहण करली और घोर तपस्याओंके द्वारा अपना शरीर त्याग कर देवलोकमें जा बसी। कुछ दिनों के बाद पुष्पवतीका जीव-देवताने मवधिझानसे अपने पुत्र-पुत्रीको अकृत्यमें जुड़े देखकर मनमें विचारा, कि ये इन अकृत्योंसे घोर नरकको वेदनाओंको सहेंगे। यह विचार कर 38 देवताने पुपचूलाको स्वप्नमें नरक तथा स्वर्गका दृश्य दिखाना शुरू किया, कि इन दृश्यों को देख वे अकृत्योंसे बचें और दुर्गतिके भागी न बनने पावें। इन स्वप्नोंको देख, पुष्पचूलाने आर्यसे चकित हो, अपने स्वप्नका वृतान्त अपने पतिसे कहा। एक दिन राजाने अन्निका पुत्राचार्यको अपनी सभामें बुलवाया
और उनसे स्वर्ग और नरकका स्वरूप पूछा। भन्निका पुत्राचार्य्यन यथार्थ वैसाही स्वर्ग और नरककका स्वरूप वर्णन किया, जैसा कि पुष्प चलाने स्वप्नमें देखा था। पूप्पचलाने हाथ जोड़कर आश्चर्यसे पूछा,-जैसे स्वर्गक सुख मैने स्वप्नमें देखें है, वे किस कर्मके प्रभावसे प्राप्त हो सकते है ?" ___ गुरु महाराज बोले,-"भद्र : सुदेव सुगुरु और सुधर्मके प्रति श्रदा होने तथा जैन-धर्मकी दीक्षा ग्रहण करनेसे स्वर्गापवग सुख मिलते हैं।"
इस पानको सुनकर पुष्पचलाको संसारसे वैराग्य हो गया मतपत्र हाथ जोड़कर वह गुरु महाराजसे बोली, - __ "भगवन् ! ये मपने पतिसे पूछकर मापके श्रीचरणों में दीक्षा प्रहण करगी।"
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