Book Title: Patan Chaitya Pparipati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijay Jain Free Library

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Page 9
________________ देवनिर्मित स्तूप,जीवितस्वामिप्रतिमा, कल्याणभूमि आदि तीर्थोनी नोंध करवामां आवी छे.' छेद सूत्रोना भाष्य अने टीकाकारो लखे छे के अष्टमी चतुर्दशी आदि पर्व दिवसोमां सर्व जैन देहरासरोनी वंदना करवी जोहये, भले ते चैत्य संघन होय के अमुक गच्छनी मालिकी, होय तो पण तेनी यात्रा करवी, वखत पहोंचतो होय तो सर्व ठेकाणे संपूर्ण चैत्यवंदन-विधि करवो जोइये अने वखत न पहोंचतो होय तो अक अक स्तुति वा नमः स्कार ज करवो पण गामना सर्व चैत्योनी यात्रा करवी.२ व्यवहार सूचना भाष्य अने चूर्णिमां लख्युं छे के अहिच्छवायां पार्श्वनाथस्य धरगेन्द्रमहिमास्थाने ।” -आवारांगनियुक्ति पत्र ४१८। १ " उत्तरावहे धन्म वक, मधुराए देवणिम्मिओ थूभो, कोसलाए जियंतसामिपडिमा, तित्थंकराग वा जम्मभूमिओ । -निशीथंबूर्णि पत्र २४३-२ । २ निस्सकडमनिस्सकडे चेइर सव्वहिं थुई तिनि । वेलें व चेइआणि व नाउं इक्किक्किआ वा वि ॥ -भाष्य ३ अट्ठमी-वउद्दसीसुं चेइय सव्वाणि साहुणो सव्वे । वन्देयव्वा नियमा अवसेस-तिहीसु जहसत्तिं ॥ एएसु चेव अट्ठमीमादीसु चेइयाई साहुणो वा जे अण्णाए वसहीए ठिआ ते न वंदति मासलहु । -व्यवहारभाष्य अने चूर्णि.

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