Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar

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Page 5
________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् जैसे किसी एक पद को आधुदात्त स्वरयुक्त देखा तो जान लेगा कि इसका अमुक अर्थ में अमुक जित् वा नित् प्रत्यय हुआ है, इसलिये यही इसका अर्थ होना चाहिये, इससे विरुद्ध नहीं हो सकता। ऐसा निश्चय स्वरज्ञ पुरुष को हो जाता है। ___ जैसे-स कर्ता । स कर्ता । इन दो वाक्यों में दो प्रकार के स्वर होने से दो ही प्रकार के अर्थ होते हैं। पहिले वाक्य में 'लुट' लकार की क्रिया है। अर्थ-वह अगले दिन करेगा। और दूसरे कृदन्त में तृच्-प्रत्ययान्त शब्द है। अर्थ-वह करनेवाला पुरुष। उदात्त आदि स्वर बोध के बिना वेदमन्त्रों का गान और उच्चारण भी यथार्थ नहीं हो सकता क्योंकि षड्ज आदि स्वर गानविद्या में उपयोगी हैं, वे उदात्त आदि के बिना नहीं हो सकते। जैसे उच्चौ निषादगान्धारौ नीचावृषभधैवतौ । शेषास्तु स्वरिता ज्ञेया: षड्जमध्यमपञ्चमा:।। (याज्ञवल्क्यशिक्षा) अर्थ-षड्ज आदिकों में निषाद और गान्धार तो उदात्त के लक्षण से ऋषभ और धैवत अनुदात्त के लक्षण से तथा षड्ज, मध्यम और पंचम ये तीनों स्वरित स्वर से गाये जाते हैं। उदात्तादि के बिना वेदमन्त्रों का उच्चारण भी प्रिय नहीं लगता और जब उदात्त आदि के सहित उच्चारण किया जाता है तब अतिप्रिय मनोहर लगता है। उदात्त आदि स्वरों का परिचय पाणिनीय अष्टाध्यायी के षष्ठ अध्याय में उदात्त आदि स्वरों का विशेष वर्णन किया गया है, अत: पाठकों के हितार्थ यहां उनका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया जाता है। (१) अकार आदि स्वरों के उदात्त आदि गुण___महर्षि पतञ्जलिकृत व्याकरण-महाभाष्य के अनुसार अकार आदि स्वरों के उदात्त आदि सात गुण होते हैं- “सप्त स्वरा भवन्ति-उदात्त:, उदात्ततरः, अनुदात्त:, अनुदात्ततर:, स्वरित:, स्वरिते य उदात्त: सोऽन्येन विशिष्टः, एकश्रुति: सप्तम:” (महाभाष्य १।२।३३) अर्थात् उदात्त, उदात्ततर, अनुदात्त, अनुदात्ततर, स्वरित, स्वरित में जो उदात्त है वह पूर्वोक्त उदात्त से विशिष्ट होता है, वह उदात्त और एकश्रुति ये सात स्वर हैं। (२) उदात्त और अनुदात्त का लक्षण पाणिनीय अष्टाध्यायी में ‘उच्चैरुदात्त:' (१।२।१२९) नीचैरनुदात्त:' (१।२।३०) ये उदात्त और अनुदात्त स्वरों के लक्षण हैं। इन सूत्रों का प्रायश: यह अर्थ समझा जाता है कि जो अकार आदि स्वर ऊंची ध्वनि से उच्चारण किया जाये वह उदात्त' है और जो नीची ध्वनि से उच्चारण किया जाये वह 'अनुदात्त' कहाता है, किन्तु ऐसा नहीं है। इन सूत्रों की व्याख्या में महर्षि पतञ्जलि लिखते हैं

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