Book Title: Oswal Gyati Samay Nirnay
Author(s): Gyansundarmuni
Publisher: Gyanprakash Mandal

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८) जैन जाति महोदय प्र. चोथा. पति अपार, खडबपति मिल्या माले । देरासर बहु साथ, खरच सामो कुण भाले । घन गरजे वरसे नहीं, जगो जुग वरसे अकाले ।३। यति सति साथे घणा, राजा राणवड भूप । बोले भाट विरूदावलि, चारण कविता चूप । मिल्या सेवग सामटा, पुरे संख अनूप । जुग जस लीनो दान दै, वो जगो संघपति रूप ।४। दान दीयो लख गाय, लख वलि तुरी तेजाला, सोनो सौ मण सात सहस मोतीयोरी माला । रूपारो नहीं पार सहस करहाकर माला, बीये बावीस भल उगियों श्रोसवंस वड भूपाला " + x अगर यह कविता सत्य हो तो इससे यह सिद्ध होता है कि वि. सं. २२२ पहिलि ओसवाल आभानगरी तक पसर गये थे अर्थात् सचायका देविका परिचय पाकर जगो ओसवाल संघ सहित ओशियामें बडे ही आडंबरसे आया हो, महावीर यात्रा और देविका दर्शन कर सेवग भाट चारण ओर ब्राह्मण वगैरहको बडा भारी दान दिया हो वह दन्त कथा परम्परासे चली आइ हो बाद ये किसी अर्वाचीन कविने कविताके रूपमे संकलित कर लि हो तो वह बन भी सक्ता है कारण कि वीरात् ७० वर्ष और वि. सं. २२२ वीचमें ६२२ वर्ष जितना समय होता है इतनेमे ओसवाल ज्ञाति आभानगरी तक पहुँच गइ हो तो आश्चर्य ही क्या है पर इसमें इतिहासिक प्रमाण न होनेके कारण इसपर हम इतना जौरदार विश्वास नहीं दिला सकते है. (२) दूसरा मत-जो जैनाचार्यों और जैन ग्रन्थोंका है इस For Private and Personal Use Only

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