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(४०) जैन जाति महोदय प्र० चोथा.
शूद्रोऽपि शीलसम्पन्नो, गुणवान् ब्राह्मणो भवेत् । ब्राह्मणोऽपि क्रियाहीनः, शूद्रापत्य समा भवेत् ॥ १॥
अर्थ:-शील गुणादि सम्पन्न जो शूद्र है वह ब्राह्मण मानाजा सकता है और जो ब्राह्मण अपनि क्रियासे हीन शूद्रत्व कर्म करता हो वह ब्राह्मण भी शूद्र कहलाता है ।
इस शास्त्रकारोने वर्ण का आधार कर्म पर रख छोडा है कारण जिस्का कर्म अच्छा है उस का परिणाम अच्छा है जिसका परिणाम अच्छा है वह धर्म का पात्र है।
इत्यादि इस प्रमाणिक प्रमाणों द्वारा समाधान से हमारे भ्रम वादियों की शंका मूल से दूर हो जाति है और पवित्र प्रोसवाल ज्ञाति २४०० वर्ष पूर्व पवित्र क्षत्रिय वर्ण से उत्पन्न हुई सिद्ध होती है इत्यलम.
ताः १५-४-२८
श्रीमदुपकेश गच्छीय मुनि ज्ञानसुन्दर
सादडी (मारवाड)
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