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(३२)
जैन जाति महोदय प्र० चौथा. दे जैन बनाया और कितनेक पट्टावलिकारोंका मत है कि ३८४००० घरोंको प्रतिबोध दीया शेष शूद्रादि लोग जो वाममार्गियोंके पक्षमें थे उन्होंने जैन धर्म स्वीकार नहीं किया था कारण जैन धर्म के नियम (कायदा) एसे तो सख्त है कि उसे संसारलुब्ध-अज्ञ जीव पाल ही नहीं सक्ते है. अगर उपर की दोनों पट्टावलियों कि संख्यामें कोइ शंका करे तो उत्तरमें वह समझना चाहिये कि आचार्यश्रीने उकेशपुरमें पहिले पहल १२५००० घरों को प्रतिबोध दिया बाद आसपास के ग्रामोंमें तथा जैन मन्दिर की प्रतिष्टा के समय उपदेश दे जैन बनाया उन सब की संख्या ३८४००० की थी और एसा होना युक्तायुक्तभी है
दूसरी बात यह है कि जिस जमाने में शूद्र वर्ण के साथ स्पर्श करनेमें इतनी घृणा रखी जाति थी कि कोई ब्राह्मण लोग जहां शास्त्र पढते हो वहां से कोइ शूद्र निकल जावे या शूद्र के छाया पड जावे तथा दृष्टिपात तक भी हो जावे तो वह शूद्र बडा भारी गुन्हगार समजा जाता था । उस जमानेमें ब्राह्मण राजपुत वगैरह उन शूद्रोंके साथ एकदम भोजन व बेटी व्यवहार करले यह सर्वथा असंभव है अगर एसा ही होता तो जैन धर्मके कट्टर विरोधी लोग न जाने जैन ज्ञातियों के लिये किस सृष्टि की रचना कर डालते पर जैन ज्ञातियों के विरोधीयोंने अपने किसी पुराण व ग्रन्थमें एसा एक शब्द भी उच्चारण नहीं किया कि जैन जातियोंमें शूद्र भी सामिल है अगर एसा होता तो आज संसार भर कि जातियों में जो ओसवाल ज्ञातिका गौरव मान-महस्व इज्जत चढबढके हैं वह स्याद् ही होता । इतना ही नहीं बल्के बडे
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