Book Title: Oswal Gyati Samay Nirnay
Author(s): Gyansundarmuni
Publisher: Gyanprakash Mandal

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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन जाति महोदय प्र. चोथा. , ही रूक गया अर्थात् उच्च वर्णवाले लोग इसाइ धर्ममें सामिल होते भटक गये पर जैन ज्ञातियां विक्रम पूर्व चारों वर्षोसे विक्रम की सोलहवीं सदी तक खुब वृद्धि होती गइ इसका कारण यही था कि जैन जातियां पवित्र उच्च वर्णसे उद्भव हुई है दूसरा ओसवाल ज्ञाति में चंडालिया, ढेढिया, वलाइ, चामड वगरह जातियों के नाम देखके ही कल्पना कर लि गई हो कि उक्त ज्ञातियों ही शूद्रताका परिचय दे रही है पर एसी कल्पना करनेवालों की गहरी अज्ञानता है कारण पहिले उक्त जातियों के इतिहासको देखना चाहिये कि वह नाम उस मूल ज्ञाति के है या पीच्छेसे कारण पाके मूल ज्ञातिके शाखा प्रति शाखा रूप उपनाम है जैसे शैव-विष्णु धर्म पालने वाले महेश्वरी ज्ञातिमें मुडदा चंडक भूतडा कबु काबरा बुब सारडादि अनेक जातियों है देखो " महेश्वरी बंस कल्पद्रुम " क्या इनसे हम यह मान लेंगे कि मुडदोंसे व चंडालोंसे उक्त ज्ञातियां बनी है ? ओसवाल ज्ञाति प्रायः पवित्र क्षत्रिय वर्ण से बनी है क्षत्रिय वर्णमें उस समय एसी आचरणाओ थी कि जिस्के लिये आज पर्यन्त भी कहावत है कि " दारूडा पीणा और मारूडा गवाना" अर्थात् राजपुतोंमें मदिरापान की रूढी विशेष थी और ढोलणियों डाढणियों के पास एसे खराब गीत गवाये करते थे और ठठा मश्करी हांसी तो इतनी थी कि जिस्की मार्यादा भी स्यात् ही हो जष जैनाचायोंने उन राजपुतोंको प्रतिबोध दै जैन बनाये तबसे For Private and Personal Use Only

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