Book Title: Oswal Gyati Samay Nirnay
Author(s): Gyansundarmuni
Publisher: Gyanprakash Mandal

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Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दूसरी शंका का समाधान. ( ३७ ) ar चंडालिया ढेढिया बलाइ आदि ज्ञातियों मूल किस वंस से बनी हैं वह बतलाके हमारे शंका करनेवालों भाइयों के भ्रमकों दूर कर देना ठीक होगा । (१) चंडालिया - मूलक्षत्रिय चौहानवंसी थे जैन होने के बाद सावलि में इन्होंका लुंग गोत्र होना लिखा है इनके पूर्वज चंडालिया ग्राम में रहते थे वहां गुरुकृपा से अपनि कुल देवि को चण्डालनि विद्याद्वारा आराधन की तब वह देवि चंडालनी के रूप से घर में आइ जिस के प्रभाव से घर में अखूट धन और पुत्रादि की वृद्धि हुई जिन्होंने दुष्काल में देश के प्राण बचाये, तीर्थोंका वडे वडे संघ निकाले और अनेक मन्दिर मूर्त्तियां - तलाव कुवा की प्रतिष्टादि शुभ काय कराये पर देवि के रूप को देख लोगोंने चंडालिया कहना शरूकर दिया बाद उस ग्राम को छोड अन्य ग्राम में जाने से ग्राम के नाम से उसको चंडालिया कहने लगे पर मूल यह चौहान राजपुत है । (२) ढेढिये - बलाइ - चामड यह तीनों ज्ञातियों मूल पँवार राजपुत है. इन तीनों ज्ञातियों के पूर्वजोंने मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्टा कराई उन के शिलालेख बहुत संख्या में मिलते है जिसमें इन जातियों के नाम के साथ इनके मूल गौत्र व वंसभी लिखा गया है देखो जैन लेख संग्रह पहला दूसरा खण्ड तथा प्राचीन जैन शिलालेख संग्रह और धातू प्रतिमा लेख संग्रह ॥ ( क ) ढेढिये ग्राम से निकल दूसरे ग्राम में वसने से देढिये नाम पड़ा हैं। देखो जैन लेख संग्रह प्रथम खण्डका लेखांक For Private and Personal Use Only

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