________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(३६) जैन जाति महोदय प्र. चोथा. दि ज्ञातियों के नाम वैपारसे पड़ा है।
(५) कोटेचा डांगरेचा ब्रह्मेचा वागरेचा कांकरेचा सालेचा प्रामेचा पावेचा पालरेचा संखलेचा नांदेचा मादरेचा गुगलेचा गुदेचा केडेचा सुंघेचा इत्यादि ज्ञातियों के उपनाम दक्षिणकी तरफ गये हुवे ओसवालों के है । - इसी माफीक मालावत् चम्पावत् पातावत् सिंहावत् आदि पिताके नामपर और सेखाणि लालाणि धमाणि तेजाणि दुद्वाणि सीपाणि वैगाणि आसांणि जनाणि निमाणि इत्यादि थलिप्रान्त व गोडवाड प्रान्त में पिताके नामपर ज्ञातियों के नाम पड गये है । ___ इत्यादि अनेक कारणोंसे ओसवालोंकी शाखा प्रति शाखा रूप सेंकडो नहीं पर हजारों जातियों बन गई जो ओसवालों में १४४४ गोत्र कहे जाते है पर अन्तिम " डोसी और गणाइ होसी" इस पुराणि कहावत के बाद भी एकेक गौत्रसे अनेक जातियों प्रसिद्धि में आई थी । यहांपर यह कहना भी अतिशययुक्ति न होगा कि ओसवाल ज्ञाति उस जमाने में साना प्रति साखाफलफूलसे वट वृक्षकी माफीक फाली-फूली थी जबसे आपस कि द्वेषाग्निरूपी फूटके चिनगारियें उडने लगी तबसे इस ज्ञातिका अधःपतन होने लगा जिसकी साखा प्रति साखा तो क्या पर मूल भी अर्धदग्ध बन गया है अगर अबी भी प्रेम ऐक्यता रूपी जलका सिंचन हो तो उम्मेद है कि पुनः इस पवित्र ज्ञाति को हमे कली फूली देखनेका समय मिले ।
For Private and Personal Use Only