Book Title: Oswal Gyati Samay Nirnay
Author(s): Gyansundarmuni
Publisher: Gyanprakash Mandal

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Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ओसवाल ज्ञाति समय निर्णय. ( ३१ ) में सुधारा दी जावे. आशा है कि यह मेरा लिखा हुवा प्रबन्ध किसी न किसी रूपसे जैन जनताको फायदाकारी अवश्य होगा. इत्यलम् । एक दूसरी शङ्का - ओसवाल ज्ञातिके विषय कितनेक अज्ञ लोग जो ओसवाल ज्ञातिके इतिहास से अज्ञात है वह एसी शंका कर बैठते है कि ओसवाल ज्ञातिमें शूद्र वर्ण भी सामिल है इसके प्रमाण में दो दलिलें पेश करते हैं (१) जैनाचार्य रत्नप्रभसूरिने ओशियों नगरी में ओसवाल ज्ञाति कि स्थापना करी थी तब उस नगरी के सबके सब लोग अर्थात् तमाम जातियों ओसवाल बन गइथी जिसमें शूद्र जातियों भी सामिल थीं (२) आज ओसवाल ज्ञातियोंमें चण्डालिया, ढेढिया, बलाई और चामडादि जातियों शूद्रत्व की स्मृति करा रही हैं अर्थात् उक्त जातियों पहिले शूद्र वर्णकी थी वह ओसवाल होनेके बाद भी उनकी स्मृतिके लिये वहका वह पूर्व नाम रखा है- समाधान- इन दोनों दलिलों में कल्पित कल्पनाके सिवाय कोईभी प्रमाण नहीं है कि जिसपर कुच्छ विश्वास रखा जावे । तथापि इन मिथ्या दलीलोंका समाधान करना हम हमारा कर्त्तव्य समकते है - किसी ग्रन्थ व पट्टावलि कारोंने एसा नहीं लिखा है कि उकेशपुर (ओशियों) में सब के सब लोग जैन श्रोसवाल बन गये थे, बल्के इसके विरूद्ध में एसा प्रमाण मिलता है कि आचार्य रत्नप्रभसूरि उपकेशपुर में १२५००० घर राजपुतों को प्रतिबोध For Private and Personal Use Only

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