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ओसवाल ज्ञाति समय निर्णय.
(१७) भूल हो गई है वास्ते इस विषय में नैणसी की ख्यातपर विश्वास रखना सिवाय अन्ध परम्परा के और कुच्छ भी सत्यता नहीं हैं.
(२) दूसरी दलील यह है कि विक्रम की दशवी सदी पहिले ओसवाल ज्ञाति का कोई भी शिलालेख नहीं मिलता है इत्यादि.
अव्वल तो विक्रम कि दशवी सदीके पहिले 'पोसवाल' एसा शब्द कि उत्पत्ति भी नहीं थी वह हम उपर लिख पाये है जिस. शब्द का प्रादुर्भाव भी नहीं उसके शिलालेख ढूंढनाही व्यर्थ है कारण ओसवाल यह उएस वंस का अपभ्रंश विक्रम की इग्यारवी सदी के आसपास हुआ है बाद के सेंकडो हजारों सिलालेख मिल सक्ते हैं इस समय के पहिले उपकेश वंस अच्छी उन्नति पर था जिसके प्रमाण हम आगे चलकर देगे।
किसी स्थान व ज्ञाति व व्यक्ति के सिलालेख न मिलने से वह अर्वाचीन नहीं कहला सक्ति है जैसे जैन शास्त्रकारोंने राजा संप्रति जो विक्रम के पूर्व तीसरी सदी में हुवे मानते है जिसने जैन धर्म की बडी भारी उन्नति की १२५००० नये मन्दिर बनाये ६०००० पुगणे मन्दिरों के जीर्णोद्धार कराये इत्यादि महाप्रतापि राजा हुवा था रा. बा. पं. गौरिशंकरजी अोझाने अपने राजपुताना का इतिहास के प्रथम खण्ड में लिखा है कि राजा कुणाल के दशर्थ और सम्प्रति दो पुत्र थे जिसमें संप्रतिने जैन धर्म को बहुत तरक्कीदी इत्यादि आज उन संप्रति राजा का कोई भी शिलालेख दृष्टिगोचर नहीं होता है एसे ही हमारे पवित्र तीर्थाधिराज श्री सिद्धाचलजी बहुत प्राचीन स्थान होनेपर भी
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