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श्री जैन जाति महोदय प्र० चोथा. चन्द्रप्रभु की मूर्ति बनाई थी इससे भी यह ही सिद्ध होता है कि उस समय उपकेश ज्ञाति अच्छी उन्नति पर थी
(९) आचार्य हरिभद्रसूरि आदि पाठ आचार्य सामिल मिल के महानिशिथ ' सूत्र का उद्धार किया जिस्मे उपकेश गच्छाचार्य देवगुप्तसूरि भी सामिल थे इसका समय विक्रम की छट्टी शताब्दी का है इस समय पहिला उपकेशगच्छ मोजुद था तो उपकेश ज्ञाति तो उस के पहिले ही अपनि अच्छी उन्नति कर चुकी यह निःशंक है ( देखो महानिशिथ दू० अ० अन्त में ).
(१०) आचार्यश्री विजयानंदसूरिने अपने जैन धर्म विषय प्रश्नोत्तर नामक ग्रन्थ में लिखा है कि देवरूद्धिगणि क्षमासमणजीने उपकेशगच्छाचार्य देवगुप्तसूरि के पास एक पूर्व सार्थ और आधा पूर्व मूल एवं दोढ पूर्व का अभ्यास किया था इसका समय विक्रम की छठी सदी के पूर्वार्द्ध है यह ही वात उपकेश गच्छ चारित्र
और पटावलि मे लिखी है इससे यह सिद्ध होता है कि छठी सदी मे उपकेशगच्छाचार्य मौजुद थे तो उपकेश ज्ञाति तो इनके पहिला अच्छी उन्नति ओर आबादी मे होनी चाहिये
(११) ऐतिहासिज्ञ मुन्शी देविप्रसादजी जोधपुरवालेने राजपुत्ताना की सोध खोज करते हुवे जो कुच्छ प्राचीनता मिलि उनके बारे में " राजपुताना कि सोध खोज" नामक एक पुस्तक लिखी थी जिस्मे लिखा है कि कोटा राज के अटारू नामक ग्राम मे एक जैन मन्दिर जो खंडहर रूपमे है जिसमें एक
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