________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रोसवाल ज्ञाति के समय निर्णय. (१७) वर्ष तक ज्ञानाभ्यास करवाके उनके भी शिष्यसमुदाय विशाल संख्यामें हो जानेपर उन चारों प्रभावशाली मुनियोंको वासक्षेप पूर्व पदार्पण कर बहांसे विहार करवाये बाद उन चारों महापुरुपों के नामसे अलग अलग चार शाखाओं हुई यथा
(१) नागेन्द्र मुनि से नागेन्द्र साखा जिस्में उदयप्रभ ओर मल्लिसेनसूरि आदि प्राचार्य महा प्रभाविफ हो शासन की उन्नति की
(२) चन्द्रमुनि से चंद्र साखा-जिस्में वडगच्छ तपागच्छ खरतरादि अनेक साखाओं में वडे वडे दिगविजय आचार्य हुऐ.
(३) निवृति मुनिसे निवृति साखा--जिस्मे शेलांगाचार्य दूणाचार्यादि महापुरुष हूवे जिन्होनें जैन साहित्य की उन्नति की.
(४) विद्याधर मुनि से विद्याधर साखा-जिस्में हरिभद्रसूरि जैसे १४४४ ग्रन्थ के रचयिताचार्य हूवे-यह कथन उपकेश गच्छ प्राचीन पट्टावाल में है और आचार्य श्री विजयानंदसूरिजीने अपने जैन धर्म प्रश्नोत्तर नामक ग्रन्थमें भी लिखा हैं इस से यह सिद्ध होता है कि उस समय उपकेश गच्छ अच्छी उन्नति यर था तो उपकेश ज्ञाति इनके पहिल होना स्वभावीक बात है.
(१६) भाट भोजक सेबक और कुलगुरु ओसवालों की उत्पत्ति वि. स. २२२ में बताते है मगर यह बात देशलशाहा के प्रभाविक पुत्र जगाशाहा के साथ संबन्ध रखनेबालि हो तो इस
For Private and Personal Use Only