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( २२ )
श्री जैन जात्ति महोदय प्र० चोथा.
जैन शिलालेख संग्रह भाग दूसरेके पृष्ट २ लेखांक १ में मुद्रित हैं वह बडी प्रशस्ति है जिससे उध्धृत दो श्लोक यहां दे दिये जाते हैx इतश्च गोपाह्न गिरौ गरिष्टः श्री बप्पभट्टी प्रतिबोधितश्च, श्री श्रमराजोऽजनि तस्यपत्नी काचित्व भूव व्यवहारी पुत्री ॥ ८ ॥ तत्कुक्षिजाताः किल राजकोष्टागाराह्न गोत्रे सुकृतैकपात्रे । श्री ओसवसे विशादे विशाले तस्यान्वयेऽभिपुरुषाः प्रसिद्धाः || ९ || भाट्टीसूरि और आमराजा का समय वि० नौवी सदी का प्रारंभ माना जाता है उस समय उकेश वंशिय (ओसवंस) विशादविशाल संख्या में और विशाल क्षेत्र में फले हुवे थे कि आमराजा की सन्तान को जैन बना इस विशाल वंस में मिला दिये एक नगर से पैदा हुई ज्ञाति विशाल क्षेत्र में फल जाने को कमसे कम कइ शताब्दियों तक का समय अवश्य होना चाहिये अस्तु । इस प्रमाण से विक्रम की तीजी चोथी सदि का अनुमान तो सहज ही में हो सक्ता है— राजकोठारी विशाल संख्या में आज मी अपने को आमराजा कि संतान के नाम से पुकारते है ।
( ४ ) विक्रम सं. ८०२ पाटण ( अणहिलवाडा ) की स्थापना के समय चन्द्रावती और भिन्नमाल से उपकेश ज्ञाति के बहुत से लोगों को आमन्त्रणपूर्वक पाटण में वसने के लिये ले गये थे उनकी सन्तान आज भी वहाँ निवास करती है जिन्हों के बनाये मन्दिर मूर्त्तियों आज मोजुद है देखों उन की वंसावलियों (खुर्शीनामा ).
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