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Vol. II - 1996
अकलंकदेव कृत आप्तमीमांसाभाष्य...
अकलंकदेव ने स्वामी समन्तभद्र कृत देवागम / आप्तमीमांसा पर भाष्य लिखा है । इसे देवागम विवृति भी कहा गया है। आठ सौ श्लोक प्रमाण होने से इसे अष्टशती भी कहते हैं । इसके देवागमभाष्य
और आप्तमीमांसाभाष्य नाम भी प्रसिद्ध हैं । यह भाष्य इतना जटिल एवं दुरूह है कि बिना अष्टसहस्त्री (विद्यानन्दिकृत व्याख्या) का सहारा लिए इसका अर्थ करना अत्यन्त कठिन है।
विवेच्य ग्रन्थ आप्तमीमांसाभाष्य एवं लघीयस्त्रय में भी बौद्ध साहित्य के ही अधिक उद्धरण मिलते हैं। इससे पता चलता है कि अकलंकदेव बौद्धों के मन्तव्यों / सिद्धान्तों के प्रबल विरोधी रहे, परन्तु यह विरोध किसी दुराग्रह के कारण नहीं रहा, अपितु सिद्धान्तभेद के कारण उन्होंने अपने साहित्य में बौद्धों की पग-पग पर समीक्षा / आलोचना की है।
१. आप्तमीमांसाभाष्य (अष्टशती)
अकलंकदेव ने आप्तमीमांसाभाष्य (अष्टशती) में कुल दश उद्धरण दिये हैं । कारिका २१ के भाष्य में "नोत्पत्त्यादिः क्रियाः, क्षणिकस्य तदसंभवात् । ततोऽसिद्धो हेतु" : यह वाक्य उद्धृत किया है। इसका निर्देश स्थल नहीं मिल सका है।
कारिका २१ के ही भाष्य में "ततः सूक्तम्" करके निम्नलिखित वाक्य उद्धृत किया है-यदेकान्तेन सदसद्वा तन्नोत्पत्तुमर्हति, व्योमवन्ध्यासुतवत्" ।
इसका स्रोत भी अभी ज्ञात नहीं हो सका है।
कारिका ५३ के भाष्य में अकलंक ने "न तस्य किञ्चिद्भवति न भवत्येव केवलम्" वाक्य उद्धृत किया है । यह वाक्य धर्मकीर्ति प्रणीत प्रमाणवार्तिक की कारिका का उत्तरार्ध भाग है। सम्पूर्ण कारिका इस प्रकार है।
न तस्य किञ्चिद् भवति न भवत्येव केवलम् ।
भावे ह्येष विकल्पः स्याद् विधेर्वस्त्वनुरोधतः ॥ कारिका ७६ में "युक्त्या यन्न घटामुपैति तदहं दृष्ट्वाऽपि न श्रद्दधे" वाक्य उद्धृत किया है । इसका मूल स्रोत ज्ञात नहीं हो सका है ।
कारिका ८० की वृत्ति में "संहोपलम्भनियमादभेदो नीलतद्धियोः वाक्य उद्धत है । जो प्रमाणविनिश्चय से लिया गया है । कारिका ८९ के भाष्य में "तदुक्तम्" करके निम्न कारिका उद्धृत की है ।
तादृशी जायते बुद्धिर्व्यवसायाश्च तादृशः ।
सहायास्तादृशः सन्ति यादृशी भवितव्यता ॥ यह कारिका कहाँ से ग्रहण की गई है। इसका निर्देश-स्थल अभी ज्ञात नहीं हो सका है।
कारिका संख्या १०१ के भाष्य में "तथा चोक्तम्" करके "सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य"-१० सूत्र उद्धृत किया गया है। एवं कारिका संख्या १०५ के भाष्य में "मति श्रुतयोनिबन्धो द्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु"१५ यह सूत्र उद्धृत किया है।
यह दोनों सूत्र तत्त्वार्थसूत्र से लिये गये हैं । कारिका १०६ के भाष्य में अकलंक ने निम्न वाक्य उद्धृत किया है
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