Book Title: Nirgrantha-2
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

Previous | Next

Page 285
________________ कारणवाद जितेन्द्र शाह विश्व सृजन का कोई कारण होना चाहिए, इस विषय की चर्चा वैदिक परंपरा में विविध रूपों में हुई है। किन्तु विश्ववैचित्र्य एवं जीवसृष्टिवैचित्र्य का कारण कौन है ? इसका विचार भारतीय साहित्य के प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद (प्रायः ई. पू. १५००) में उपलब्ध नहीं होता है । इस विषय में सर्वप्रथम उल्लेख श्वेताश्वतर उपनिषद् (ईसा पूर्व कहीं) में प्राप्त होता है। प्रस्तुत उपनिषद् में काल, स्वभाव, नियति, यदृच्छा, भूत और पुरुष इनमें से किसी एक को कारण मानना या इन सबके समुदाय को कारण मानना चाहिए, ऐसा प्रश्न उपस्थित किया गया है। इससे ज्ञात होता है कि उस युग में चिंतक जगत्वैचित्र्य के कारणों की खोज में लग गए थे एवं इसके आधार पर विश्ववैचित्र्य का विविध रूपेण समाधान करते थे । इन वादो में कालवाद का सबसे प्राचीन होने का प्रमाण प्राप्त होता है । अथर्ववेद (प्रायः ई. पू. ५००) में काल का महत्त्व स्थापित करने वाला कालसूक्त है जो इस बात की पुष्टि करता है । कालवाद : अथर्ववेद में कहा गया है कि काल से ही पृथ्वी की उत्पत्ति हुई है, काल के कारण ही सूर्य तपता है, समस्त भूतों का आधार काल ही है । काल के कारण ही आँखें देखती है और काल ही ईश्वर है और प्रजापति का पिता भी काल ही है । इस प्रकार अथर्ववेद का उक्त वर्णन काल को ही सृष्टि का मूल कारण मानने की ओर है; किन्तु महाभारत (प्रायः ई. पू. १५०-ईस्वी ४००) में तो उससे भी आगे समस्त जीव सृष्टि के सुख-दुःख, जीवन-मरण इन सबका आधार भी काल को ही माना गया है । कर्म से, चिंता से या प्रयोग करने से कोई भी वस्तु प्राप्त नहीं होती, किन्तु काल से ही समस्त वस्तुएँ प्राप्त होती हैं । सब कार्यों के प्रति काल ही कारण है । योग्य काल में ही कलाकृति, औषध, मन्त्र आदि फलदायक बनते हैं । काल के आधार पर ही वायु चलती है, पुष्प खिलते है, वृक्ष फल युक्त बनते है, कृष्णपक्ष, शुक्लपक्ष, चन्द्र की वृद्धि और हानि आदि काल के प्रभाव से ही होती है। किसी की मृत्यु भी काल होने पर ही होती है और बाल्यावस्था, युवावस्था या वृद्धावस्था भी काल के कारण ही आती है। गर्भ का जन्म उचित काल के अभाव में नहीं होता है। जो लोग गर्भ को स्त्री-पुरुष के संयोग आदि से जन्म मानते है, उनके मत में भी उचित काल के उपस्थित होने पर ही गर्भ का जन्म होता है । गर्भ के जन्म में गर्भ की परिणत अवस्था ही कारण है यह नहीं कहा जा सकता क्योंकि यदाकदा अपरिणत गर्भ का भी जन्म देखा जाता है । शीतऋतु, ग्रीष्मऋतु एवं वर्षाऋतु आदि काल का आगमन भी उचित काल के अभाव में नहीं होता है। अतः उपाधिभूत कालों के प्रति भी काल ही कारण है। स्वर्ग या नरक भी काल के बिना नहीं होता, कहने का अभिप्राय यह है कि संसार में जो भी कार्य होता है, उसमें से कोई भी कार्य उचित काल के अभाव में नहीं होता । अतः काल ही सबका कारण है। काल से भिन्न पदार्थ भी कार्य का कारण होता है यह असत्य है क्योंकि काल से अन्य पदार्थ अन्यथा सिद्ध हो जाते है । काल उत्पन्न पदार्थों का पाक करता है अर्थात् उत्पन्न हो जाने पर वस्तु का जो संवर्धन होता है वह काल से ही होता है । वही अनुकूल नूतन पर्यायों को उपस्थित कर उनके योग से उत्पन्न वस्तु को उपचित करता है । काल उत्पन्न वस्तु का संहार करता है। अन्य कारणों को अर्थात् कारण माने जाने वाले अन्य पदार्थो के सुप्त अर्थात् निद्रापन्न रहने पर काल ही कार्यों के संबंध में जागृत रहता है, अर्थात् कार्य Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326