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शिवप्रसाद
Nirgrantha
सं. १५२९ वर्षे वैशाख वदि ४ शुक्रे हुंबडज्ञातीय मंत्रीश्वरगोने । दोसी वीरपाल भा. वारु सु. सोमा. करमाभ्यां स्वश्रेयसे श्रीनमिनाथबिंबं का. निवृत्तिगच्छे । पु. श्रीसिंघदेवसूरिभिः जिनदत्त चांपा। प्राप्तिस्थान- आदिनाथ जिनालय, करमदी।
वर्तमान में उपलब्धता की दृष्टि से इस गच्छ का उल्लेख करने वाला अंतिम लेख वि. सं. १५६८ / ई. स. १५१२ का है।५ । यह लेख मुनिसुव्रत की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। इसका मूलपाठ इस प्रकार है :
सं. १५६८ वर्षे सुदि ५ शुक्रे हूँब. मंत्रीश्वर गोत्रे । दोसी चांपा भा. चांपलदे सु. दिनकर वना निव्रत्तगच्छे। श्री मुनिसुव्रतबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीसंघदत्तसूरिभिः॥ प्राप्तिस्थान- शांतिनाथ जिनालय, रतलाम।
इस गच्छ के आदिम आचार्य कौन थे, यह कुल या गच्छ कब अस्तित्वमें आया, इस बारे में उक्त साक्ष्यों से कोई सूचना प्राप्त नहीं होती और न ही उनके आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों की गुरु-परम्परा की कोई व्यवस्थित तालिका ही बन पाती है। यद्यपि मध्यकालीन पट्टावलियों में नागेन्द्र, चन्द्र और विद्याधर कुलों के साथ निवृत्तिकुल के उत्पत्ति का भी विवरण है, किन्तु ये पट्टावलियां उत्तरकालीन एवं अनेक भ्रामक विवरणों से युक्त होने के कारण किसी भी गच्छ के प्राचीन इतिहास के अध्ययन के लिये सर्वथा प्रामाणिक नहीं मानी जा सकतीं। इतना जरूर है कि इस कुल / गच्छ के मुनिगण प्राय: चैत्यवासी परम्परा के रहे होंगे। महावीर की पुरातन परम्परा में तो निवृत्तिकुल का उल्लेख नहीं मिलता; अत: क्या यह कुल पार्थापत्यों की परम्परा से लाट देश में निष्पन्न हुआ था? यह अन्वेषणीय है।
टिप्पणी
P. U. P. Shah., Akota Bronzes, Bombay 1959, pp 29-30. २. पं. दलसुख मालवणिया, गणधरवाद, अहमदाबाद १९५२ , पृ. ३०-३१. ३. वही. ४. वही, पृ. ३२-३४. ५. मोहनलाल मेहता, जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ३, प्रथम संस्करण, वाराणसी १९६७, पृ. ३८२ और आगे. ६. चउप्पन्नमहापुरिसचरियं, सं० पं. अमृतलाल मोहनलाल भोजक, प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, गन्थाङ्क ३, वाराणसी १९६१,
प्रशस्ति, पृ० ३३५. ७. मुनि जिनविजय, प्रस्तावना, जीतकल्पसूत्र. (मूल ग्रन्थ उपलब्ध न होने से यह उद्धरण श्री भोजक द्वारा लिखित चउप्पन्नमहापुरिसचरियं की प्रस्तावना, पृ० ५५ के आधार पर
दिया गया है। यहां उन्होंने ग्रन्थ का प्रकाशनस्थान एवं वर्ष सूचित नहीं किया है.) ८. "प्रस्तावना", चउप्पन्नमहापुरिसचरियं , पृ० ५५. ९. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, मुंबई १९३१, पृ. १८०-८१. १०. पं० दलसुख मालवणिया और प्रो. मधुसूदन ढांकी से व्यक्तिगत चर्चा के आधार पर। ११. प्रस्तावना, चउप्पन्नमहापुरिसचरियं, पृ. ५४ और आगे. १२. उपमितिभवप्रपंचकथा, हिन्दी अनुवादक पं. विनयसागर एवं लालचन्द जैन, प्रथम एवं द्वितीय खण्ड, प्राकृत भारती, पुष्प ३१,
जयपुर १९८५, प्रशस्ति, पृ. ४३७-४४०. १३. मोहनलाल मेहता, पूर्वोक्त, भाग ३, पृ० १११, १२५.
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