Book Title: Nirgrantha-2
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 303
________________ ३६ शिवप्रसाद Nirgrantha उत्कीर्ण था। मुनि जयन्तविजय जी ने इस लेख की वाचना दी है, जो कुछ सुधार के साथ यहां दी जा रही है: विष्टितक [निवृत्तक] कुले गोष्ठया वि (व)र्द्धमानस्य कारितं । [सुरूपं] मुक्तये बिंबं कृष्णराजे महीपतौ ॥ अ (आ)षाढ़सु (शु) द्धषष्ठयां समासहस्रे जिनैः समभ्यधिके (१०२४) हस्तोत्तरादि संस्थे निशाकरे [रित] सपरिवारे॥ [ना वा] हरे रं-: नरादित्यः सुशोभतां घटितवान् वीरनाथस्य शिल्पिनामग्रणी: पर [म् ॥ यद्यपि इस लेख में निवृत्ति कुल के किसी आचार्य या मुनि का कोई उल्लेख नहीं है, परन्तु आबू के परमारनरेशों के काल-निर्धारण में यह लेख अत्यन्त मूल्यवान है। वि. सं. की ११वीं शताब्दी का तृतीय लेख वि. सं. १०९२/ ई. स. १०३६ का है । इस लेख में निवृत्तिकुल के आम्रदेवाचार्यगच्छ का उल्लेख है। लेख का मूलपाठ इस प्रकार है : संवत् १०९२ फाला (ल्गु) न सुदि ९ रवी श्री निवृत्तककुले श्रीमदानदेवाचार्यगच्छे नंदिग्रामचैत्ये सोमकेन जाया....... सहितेन तत्सुतसहजुकेन च निजपुत्रसंवीरणसहिलान्वितेन नि [:] श्रेयसे वृषभजिनप्रतिमा - वार्थ (?) कारिता। प्रतिष्ठास्थान- नांदिया, प्राप्ति स्थान- जैन मंदिर, अजारी, वि. सं. की १२वीं शताब्दी के चार लेखों६ [वि. सं. ११३० / ई. स. १०७४, तीन प्रतिमा लेख, और वि. सं. ११४४/ ई. स. १०८८ एक प्रतिमालेख) में भी निवृत्तिकुल के पूर्वकथित आम्रदेवाचार्यगच्छ का उल्लेख है। इन लेखों का मूलपाठ इस प्रकार है : संवत् ११३० ज्येष्ठ शुक्लपंचम्यां श्री निवृत्तककुले श्रीमदानदेवाचार्यगच्छे कोरेस्व (श्व) रसुत दुल्ल (ल) भश्रावकेणेदं मुक्तये कारितं जिनयुग्ममुत्तमं ॥ प्राप्तिस्थान- आदिनाथ जिनालय, लोटाणा। ___ [संवत् ११३०] ज्येष्ठशुक्लपंचम्यां श्री निवृत्तककुले श्रीमदानदेवाचार्यगच्छे कोरेस्व (श्व) रसुत दुर्लभ [श्रावकेणे] दं मुक्तये कारितं जिनयुग्ममुत्तमम् ॥ कायोत्सर्ग प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्राप्तिस्थान- पूर्वोक्त । संवत् ११३० ज्येष्ठ शुक्लपंचम्यां तिहे (निवृ)तककुले श्रीमदा[म्रदेवाचार्यगच्छे]...... कायोत्सर्गप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्राप्तिस्थान- पूर्वोक्त। ॐ॥ संवत् ११४४ ज्येष्ठ वदि ४ श्री त (नि)वृत्तककुले श्रीमदानदेवाचार्यगच्छे लोटाणकचैत्ये प्रागवाटवंशोद्भव: यांयश्रेष्ठिस [हितेन] आहिल श्रेष्ठिकि (कृ) तं आसदेवेन मोल्य: (?) श्री वीरवर्धमानसा (स्वा) मिप्रतिमा कारिता। कायोत्सर्गप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्रतिष्ठास्थान एवं प्राप्तिस्थान- आदिनाथ जिनालय, लोटाणा। उक्त लेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में इस गच्छ के किसी आचार्य का उल्लेख नहीं मिलता है। ऐसा प्रतीत होता है कि निवृत्तिकुल की यह शाखा (आम्रदेवाचार्यगच्छ) ईस्वी ११वीं शती के प्रारम्भ में अस्तित्व में आयी होगी। वि. सं. ११४४ / ई. स. १०८८ के पश्चात् आम्रदेवाचार्यगच्छ से सम्बद्ध कोई साक्ष्य नहीं मिलता, अत: यह अनुमान व्यक्त किया जा सकता है कि वि. सं. की १२वीं शती के अन्त तक निवृत्तिकुल की इस शाखा का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो गया होगा। Jain Education Intemational Jain Education Intermational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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