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जितेन्द्र शाह
Nirgrantha
इसी प्रकार का वर्णन उपासकदशांगर (प्रायः २-३ शती), व्याख्याप्रज्ञप्ति २ (ईस्वी १-३ शती), और सूत्रकृतांग (ई. पू. ३-१ शती) में भी प्राप्त होता है।
जगत् के सभी घटनाक्रम नियत हैं इसलिए उनका कारण नियति को मानना चाहिए । जिस वस्तु को जिस समय, जिस कारण से तथा जिस परिमाण में उत्पन्न होना होता है वह वस्तु उसी समय, उसी कारण से तथा उसी परिमाण में नियत रूप से उत्पन्न होते हैं। ऐसी दशा में नियति के सिद्धान्त का युक्तिपूर्वक खण्डन कौन सा वादी कर सकता है । नियतिवादियों का आधार :
प्रत्येक कार्य किसी नियत कारण से नियत क्रम में तथा नियत काल में ही उत्पन्न होता है। वस्तुत: इस प्रकार रखे जाने पर नियतिवाद, कालवाद, स्वभाववाद का ही संमिश्रित रूप बन जाता है और उत्तरकालीन बौद्ध तार्किकों को हम सचमुच कह पाते हैं कि प्रत्येक वस्तु देशनियत होती है, कालनियत होती है और स्वभावनियत होती है।
अनुकूल नियति के बिना मूंग भी नहीं पकती, भले ही स्वभाव आदि उपस्थित क्यों न हो, सचमुच मूंग का यह पकना अनियतरूप से तो नहीं होता । यदि नियति एक ही रूप वाली है तब नियति से उत्पन्न वस्तुएँ भी समान रूप वाली होनी चाहिए, और यदि नियति अनियत रूप वाली होने के कारण परस्पर असमान वस्तुओं को जन्म देने वाली है तब प्रस्तुत वादी को यह मानने के लिए विवश होना पड़ेगा ।
यदि ऐसा न हो तब तो वस्तु अनियत रूप वाली होने के कारण जगत् की सभी वस्तुओं का अभाव ही सिद्ध होता है। दूसरे उस दशा में जगत् की सभी वस्तुएँ एक दूसरे के रूपवाली होने के कारण सभी प्रकार की क्रियायें निष्फल सिद्ध होनी चाहिए५६ ।
नियत कारण के रहने पर नियत कार्य की उत्पत्ति होनी चाहिए जबकि कभी-कभी इसमें विरोध पाया जाता है । कभी-कभी बहुत प्रयत्न करने पर भी कार्य सफल नहीं होता है, और कभी बिना प्रयास किए ही फल प्राप्त हो जाता है। अतः कारण सादृश्य रहते हुए भी फल में वैसादृश्य अर्थात् वैरूप्यदोष का परिहार केवल नियति को ही एक मात्र कारक मानने से हो सकता है। दूसरे शब्दों में नियति ही एक मात्र कारण है।
सभी पदार्थ नियत रूप से ही उत्पन्न होते हैं । पदार्थों के नियत रूप से ही उत्पत्ति मानने के लिए यह मानना आवश्यक है कि सभी पदार्थ किसी ऐसे तत्त्व से उत्पन्न होते हैं जिससे पदार्थों की नियतरूपता अर्थात् वैसा ही होने और अन्यथा न होने का नियमन होता है। पदार्थों के स्वरूप का निर्धारण करने में ये कारणभूत उस तत्त्व का ही नाम नियति है । अतः घटित होने वाले घटित पदार्थों को नियत मानना आवश्यक है । जैसे यह देखा जाता है कि किसी दुर्घटना के घटित होने पर भी सबकी मृत्यु नहीं होती, अपितु कुछ लोग ही मरते हैं और कुछ लोग जीवित रह जाते हैं । इसकी उपपत्ति के लिए यह मानना आवश्यक है कि प्राणी का जीवन और मरण नियति पर निर्भर है। जिसका मरण जब नियत होता तभी उसकी मृत्यु होती है और जब तक जिसका जीवन शेष होता है तब तक मृत्यु के प्रसंग बार-बार आने पर भी वह जीवित रहता है । उसकी मृत्यु नहीं होती।
नियति के समर्थन में नयचक्र में एक श्लोक में कहा गया है कि मनुष्य को जो भी शुभ-अशुभ नियति द्वारा प्राप्तव्य होता है वह उसे अवश्य प्राप्त होता है क्योंकि जगत् में यह देखा जाता है कि जो वस्तु जिस रूप में घटित होने वाली नहीं होती है वह बहुत प्रयत्न करने पर भी उस रूप में घटित नहीं होती और जो होने वाली होती है वह अन्यथा नहीं हो सकती है ।
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