Book Title: Nirgrantha-2
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 275
________________ कमलेश कुमार जैन Nirgrantha कारिका ६५ के उत्तरार्ध रूप में एक वाक्य "वक्त्रभिप्रेतमात्रस्य सूचकं वचनं त्विति" उद्धृत किया है। जिसे मूल कारिका का अंश बना लिया गया है। इसके मूल स्रोत की जानकारी नहीं मिल सकी है। कारिका ६६-६७ की विवृति के अन्त में लघीयस्त्रय में "ततः तीर्थकरवचनसंग्रहविशेषप्रस्तारमूलव्याकारिणौ द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिकौ" आदि वाक्य आया है । यह वाक्य आचार्य सिद्धसेनकृत सन्मतिप्रकरण की तीसरी गाथा की संस्कृत छाया है । सन्मतिप्रकरण की मूल गाथा निम्न प्रकार है - तित्थयरवयणसंगहविसेसपत्थारमूलवागरणी । दव्वदिठओ य पज्जवणओ य सेसा वियप्पासिं । आप्तमीमांसाभाष्य में अकलंक ने उमास्वाति, समन्तभद्र, धर्मकीर्ति, आर्यविनीतदेव आदि आचार्यों के ग्रन्थों से वाक्य, वाक्यांश या उद्धरण लिये हैं। इसी तरह लघीयस्त्रय मूल एवं विवृति में वार्षगण्य, सिद्धसेन, दिङ्नाग, धर्मकीर्ति और धर्मोत्तर, आदि आचार्यों के ग्रन्थों से वाक्य या वाक्यांश उद्धत किये गये हैं। अकलंक की उपर्युक्त दोनों कृतियों में मूलतः दार्शनिक विषयों का विवेचन है । अतः यह स्वाभाविक है कि उनमें दार्शनिक ग्रन्थों के ही उद्धरण या वाक्यांश मिलें । इसीलिए प्रायः सभी उद्धरण दार्शनिक / तार्किक ग्रन्थों से लिये गये मिलते हैं । उपर्युक्त विवेचन से पता चलता है कि अकलंकदेव ने अपने समय के अथवा अपने समय से पूर्व के प्रसिद्ध ताकिकों / लेखकों के मत की आलोचना / समीक्षा की है और उसके लिए इनके मूल ग्रन्थों से ही बहुत से अवतरण / उद्धरण दिये हैं । अकलंक के आप्तमीमांसाभाष्य एवं सविवृतिलघीयस्त्रय में कुछ ऐसे वाक्य या वाक्यांश पाये जाते हैं, जो दूसरे-दूसरे ग्रन्थों से लिए गये हैं। उनमें कुछ अंश तो ऐसे हैं, जो उद्धरण या अवतरण के रूप में लिये गये हैं, किन्तु कुछ अंश भाष्य या कारिका अथवा विवृति के ही अंग बन गये हैं अतएव भाष्य या विवृतिकार द्वारा ही रचित लगते हैं। अकलंककृत आप्तमीमांसाभाष्य एवं विवृतिसहित लघीयस्त्रय में दूसरे ग्रन्थों के जो पद्य या वाक्य उद्धत हैं, उनके निर्देश-स्थल को खोजने की यथासम्भव कोशिश की गयी है। बहुत से उद्धरणों का निर्देश स्थल अभी मिल नहीं सका है, उन्हें खोजने की कोशिश जारी है। यह भी प्रयास है कि इस प्रकार के तथा अन्य उद्धृत पद्य का वाक्य जिन-जिन ग्रन्थों में उद्धृत हैं, उनको भी संकलित कर लिया जाये । इससे ग्रन्थकारों का समय तय करने में बहुत सहायता मिल सकती है और लुप्त कड़ियों को एकत्रित किया जा सकता है और उन्हें संजोकर प्रकाश में लाया जा सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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