Book Title: Nimittopadan Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 9
________________ निमित्तोपादान ___ यदि इसके उत्तर में यह कहा जाय कि उपादानकारण तो द्रव्य या गुण होने से सदाकाल ही उपस्थित रहता है, पर निमित्तकारण के न होने से कार्य नहीं हुआ; जब निमित्त कारण मिलेगा, तब कार्य सम्पन्न हो जायेगा। - ऐसा मानने पर निमित्तकारण ही नियामक कारण ठहरेगा; क्योंकि उसके होने या न होने पर ही कार्य का होना या नहीं होना निर्भर करेगा। इस आपत्ति से बचने के लिये यदि यह कहा जाय कि कार्य की उत्पत्ति में तो दोनों ही कारणों की उपस्थिति अनिवार्य होती है तो हम कहेंगे कि भले ही दोनों कारणों की उपस्थिति अनिवार्य हो, पर नियामक कारण तो निमित्त ही रहा; क्योंकि उसके होने पर कार्य होता है और नहीं होने पर कार्य नहीं होता। __ अरे भाई ! कार्य का नियामक कारण कौन है? यह जानने के पहिले हम उपादान-निमित्त को उनके भेद-प्रभेदों सहित अच्छी तरह समझ तो लें, फिर इस विवाद में उलझें। हो सकता है कि उपादान-निमित्त के भेद-प्रभेदों के स्पष्टीकरण से यह प्रश्न सहज ही सुलझ जाय। वस्तुतः बात तो यह है कि उपादान-निमित्त के भेद-प्रभेदों के सम्यग्ज्ञान में ही इस प्रश्न का उत्तर समाहित है। अत: सबसे पहिले उनके भेद-प्रभेदों की चर्चा ही अपेक्षित है। उपादान दो प्रकार का होता है - (१) त्रिकाली उपादान और (२) क्षणिक उपादान निमित्त भी दो प्रकार के होते हैं - (१) उदासीन और (२) प्रेरक अथवा (१) अन्तरंग और (२) बहिरंग जो द्रव्य या गुण स्वयं कार्यरूप परिणमित हो, उस द्रव्य या गुण को उस कार्य का त्रिकाली उपादानकारण कहते हैं। क्षणिक उपादानकारण दो प्रकार का होता है - (क) द्रव्य और गुणों में जो पर्यायों का प्रवाहक्रम अनादि-अनन्त चला करता है, उस प्रवाहक्रम में अनन्तर-पूर्वक्षणवर्तीपर्याय क्षणिक उपादानकारणPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57