Book Title: Nimittopadan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 57
________________ 52 निमित्तोपादान अविनाशी घट-घट बसे, सुख क्यों विलसत नाहिं। शुभ निमित्त के योग बिन, परे-परे बिललाहिं // 36 // शुभ निमित्त इह जीव को, मिल्यौ अनन्ती बार / पै इक सम्यग्दर्श बिन, भटकत फिस्यौ गंवार // 37 // सम्यग्दर्श भये कहा, त्वरित मुक्ति में जांहि / आगे ध्यान निमित्त है, ते शिव को पहुँचाहिं // 38 // छोरि ध्यान की धारणा, मोरि योग की रीत / तोरि कर्म के जाल को, जोरि लई शिव प्रीत // 39 // तब निमित्त हार्यो तहाँ, अब नहीं जोर बसाय / उपादान शिवलोक में, पहुँच्यौ कर्म खिपाय // 40 // उपादान जीत्यो तहाँ, निज बल कर परकास / सुख अनन्त ध्रुव भोगवे, अन्त न बरन्यौ तास // 41 // उपादान अरु निमित्त ये, सब जीवन पै वीर। जो निज शक्ति सँभारही, सो पहुँचे भवतीर // 42 // 'भया' महिमा ब्रह्मा की, कैसे वरनी जाय? वचन अगोचर वस्तु है, कहिबी वचन बताय // 43 // उपादान अरु निमित्त को, सरस बन्यौ संवाद / समदृष्टि को सरल है, मूरख को बकवाद // 44 // जो जानै गुण ब्रह्म के, सो जाने यह भेद / साख जिनागम सौं मिले, तो मत कीज्यौ खेद // 45 // नगर आगरा अन है, जैनी जन को वास / तिह थानक रचना करी, भैया' स्वमति प्रकास // 46 // संवत् विक्रम भूप को, सत्तरह से पंचास / फाल्गुन पहले पक्ष में, दशों दिशा परकास // 47 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 55 56 57