Book Title: Nimittopadan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 14
________________ एक अनुशीलन परिणमन के सन्मुख न होने के) कारण घट नहीं होता; अतः बाह्य में दण्डादिनिमित्त सापेक्ष मिट्टी का पिण्ड ही भीतर घट होनेरूप परिणाम का सान्निध्य होने से घट होता है, दण्डादि घट नहीं होते, इसलिये दण्डादि निमित्तमात्र हैं। यह प्रेरक निमित्तों को निमित्तता का स्पष्टीकरण है। इस उल्लेख में बहुत ही समर्थ शब्दों द्वारा यह स्पष्ट कर दिया है कि न तो सब प्रकार की मिट्टी ही घट का उपादान है और न ही पिण्ड, स्थास, कोश और कुसूलादि पर्यायों की अवस्थारूप से परिणत मिट्टी घट का उपादान है, किन्तु जो मिट्टी अनन्तर समय में घटपर्यायरूप से परिणत होनेवाली है, मात्र वही मिट्टी घटपर्याय का उपादान है। यही तथ्य राजवार्तिक के उक्त उल्लेख द्वारा स्पष्ट किया गया है। मिट्टी की ऐसी अवस्था के प्राप्त होने पर वह नियम से घट का उपादान बनती है। यही कारण है कि तत्त्वार्थवार्तिक के उक्त उल्लेख द्वारा यह स्पष्ट कर दिया है कि जब मिट्टी घटपर्याय के परिणमन के सन्मुख होती है; तब दण्ड, चक्र और पौरुषेय प्रयत्न की निमित्तता स्वीकृत की गई है, अन्य काल में वे निमित्त स्वीकार नहीं किए गये हैं। इसी तथ्य को स्पष्ट करते हुए प्रमेयकमलमार्तण्ड में लिखा है - यच्चोच्यते-शक्तिर्नित्याऽनित्या वेत्यादि। तत्र किमयं द्रव्यशक्तौ पर्याये वा प्रश्नः स्यात्, भावानां द्रव्यपर्यायशक्तयात्मकत्वात्। तत्र द्रव्यशक्ति नित्यैव, अनादिनिधनस्वभावत्वाद् द्रव्यस्य। पर्यायशक्तिस्त्वनित्यैव, सादिपर्यवसानत्वात् पर्यायाणाम्।नच शक्तेर्नित्यत्वे सहकारिकारणनपेक्षयैवार्थस्य कार्यकारित्वानुषंगः, द्रव्यशक्तेः केवलायाः कार्यकारित्वानभ्युपगमात्। पर्यायशक्तिसमन्विता हि द्रव्यशक्तिः कार्यकारिणी, विशिष्टपर्यायपरिणतस्यैव द्रव्यस्य कार्यकारित्वप्रतीतेः। तत्परिणतिश्चास्य सहकारिकारणापेक्षया इति पर्यायशक्तेस्तदैव भावान्न सर्वदा कार्योत्पत्तिप्रसंगः सहकारिकारणापेक्षावैयर्थ्य वा। - प्रमेयकमलमार्तण्ड २, १, पृ. १८७

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