Book Title: Nimittopadan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 38
________________ कुछ प्रश्नोत्तर 33 उत्तर : क्यों नहीं, वे भी सजन हैं ; पर वे सब लौकिक सज्जन हैं । किन्तु यहाँ बात लोकोत्तर मार्ग की चल रही है। लोकोत्तर मार्ग में तो उन्हीं को सत्पुरुष कहा जाता है, जो मुक्ति के मार्ग पर स्वयं चलते हों और जगत को भी मुक्ति का मार्ग बताते हों, जगत को मुक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हों। ___ मुक्ति के मार्ग पर चलने की क्रिया-प्रक्रिया स्वाधीन क्रिया है, स्वाधीन प्रक्रिया है; अत: वह उपादान के आश्रय से ही सम्पन्न होती है, निमित्त के आश्रय से नहीं। आत्मकल्याण का महान काम जिस उपादान के आश्रय से, जिस उपादान को ध्यान का ध्येय और श्रद्धान का श्रद्धेय बनाने से सम्पन्न होता है; वह त्रिकाली उपादान तो प्रत्येक व्यक्ति का स्वयं का त्रिकाली निज भगवान आत्मा ही है। उसे ही ध्येय बनानेवाली ध्यानपर्याय, उसे ही ज्ञेय बनानेवाली ज्ञानपर्याय और उसमें ही अपनापन स्थापित करनेवाली श्रद्धानपर्याय क्षणिक उपादान है। ___ अत: त्रिकाली उपादानरूप निज भगवान आत्मा का स्वरूप बतानेवाले ज्ञानी पुरुष ही वे सत्पुरुष हैं; जिनका उपदेश मुक्ति के मार्ग में निमित्त बनता है तथा इसीकारण वे भी निमित्त कहलाते हैं। पर ध्यान रहे उनका भी वही उपदेश वास्तविक निमित्त है, जो त्रिकाली ध्रुव भगवान आत्मा के स्वरूप को स्पष्ट करने के लिये दिया गया हो, आत्मा के अनुभव करने की प्रेरणा के लिये दिया गया हो और उसके कारण ही उन्हें मुक्ति के मार्ग में निमित्तरूप से स्वीकार किया गया है। जिन लोगों को उस त्रिकाली ध्रुव परमात्मा का परिचय ही नहीं है, जिनकी वाणी में उसकी चर्चा तक नहीं आती; अपितु जो उसका नाम सुनकर, उसकी चर्चा सुनकर भड़क उठते हैं, उद्वेलित हो जाते हैं, अशान्त हो जाते हैं; उसकी चर्चा करनेवालों को भला-बुरा कहने लगते हैं; उनके लिये तो अभी दिल्ली बहुत दूर है, वे स्वयं ही उस परमतत्व से अपरिचित हैं; अत: वे मुक्तिमार्ग के सत्पुरुष कैसे हो सकते हैं ?

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