Book Title: Nimittopadan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ 44 निमित्तोपादान सच्ची सुख-शान्ति है; लौकिक सुख-शान्ति तो सिर का बोझा कंधे पर रखने के समान है। वह सच्ची शान्ति है ही नहीं। 'आध्यात्मिक लोग ही इसमें उलझें, हम जैसे साधारण लोग इसे समझने में अपनी शक्ति क्यों लगायें; अपना समय क्यों खराब करें' - अरे भाई ! ऐसी बातें क्यों करते हो? आध्यात्मिक लोग कोई अलग नहीं होते, उनके अलग गांव नहीं बसे हैं; जो लोग सच्चा सुख चाहते हैं, शान्ति के इच्छुक हैं, अपनी आत्मा को जानना-पहिचानना चाहते हैं, इस दिशा में प्रयत्नशील हैं, सक्रिय हैं, सजन हैं; वे सभी आध्यात्मिक ही हैं। 'हम और आप साधारण नहीं हैं, सभी आत्मार्थी हैं, स्वयं भगवान हैं। स्वभाव से तो सभी भगवान हैं ही; पर्याय में भी अल्पकाल में ही दो-चार भवों में ही भगवान बननेवाले हैं।' - ऐसा क्यों नहीं सोचते। हीन भावना रखकर - 'हम तो साधारण जन हैं, लौकिक जन हैं;' - इसप्रकार की बातें करके निज भगवान आत्मा का अपमान क्यों करते हो? तीन लोक के नाथ इस महाप्रभु चैतन्यतत्व को दीन-हीन क्यों समझते हो? तुम तो अनन्तशक्तियों के संग्रहालय हो, अनन्तगुणों के गोदाम हो, ज्ञान के घनपिण्ड हो, आनन्द के रसकन्द हो; ऐसी हीन बातें करना तुम्हें शोभा नहीं देता। तुम पर्याय में अपनापन तोड़कर स्वभाव में अपनापन लाओ; तभी तुम्हारी यह दीनता समाप्त होगी। ___ आश्चर्य की बात तो यह है कि निमित्त-उपादान के स्वरूप समझने में लगाये गये समय और शक्ति को तुम समय और शक्ति की बर्बादी समझते हो। मैं तुमसे ही पूछना चाहता हूँ कि उस समय और शक्ति को बचाकर तुम कहाँ लगाना चाहते हो? और वह कौन-सा स्थान है, जहाँ तुम अपने समय और शक्ति को लगाकर उसे सार्थक कर सकोगे ? निमित्त और उपादान की सच्ची समझ में लगाया गया उपयोग प्रकारान्तर से वीतरागी तत्वज्ञान में ही लगा है; इससे अच्छा उपयोग का उपयोग कोई दूसरा नहीं हो सकता। हाँ, आत्मानुभूति में लगा उपयोग इससे भी महान है; पर यह सब भी तो उसी के लिये है। अतः निमित्त-उपादान

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57