Book Title: Nimittopadan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 50
________________ कुछ प्रश्नोत्तर की समझ में लगा समय और शक्ति बर्बाद नहीं होती, अपितु सहस्रगुणी होकर फलती है। निमित्त-उपादान की चर्चा में उपयोग को लगाना उपयोग को उलझाना नहीं है; सुलझाना है; यह उलझने का नहीं, सुलझने का मार्ग है। ___ 'अनुकूल संयोग ही लौकिक लाभ हैं' - इस दृष्टि से विचार करें तो भी एक बात अत्यन्त स्पष्ट है कि प्रत्येक प्राणी को अनुकूल संयोग स्वयं की उपादानगत योग्यता एवं शुभकर्मों के उदय के निमित्त से प्राप्त होते हैं। यदि इस बात को भी अच्छी तरह समझ लें तो फिर हम अनुकूल संयोगों के लिये, लौकिक सुखों के लिये भी किसी दूसरे व्यक्ति के सामने हाथ नहीं पसारेंगे, दीन-हीन होकर किसी की गुलामी स्वीकार नहीं करेंगे; सद्भाव एवं सत्कर्म करने के लिये ही प्रेरित होंगे। इस संदर्भ में समयसार बंधाधिकार की निम्नांकित गाथाएँ (हिन्दी पद्यानुवाद) मननीय हैं - मैं सुखी करता दुःखी करता हूँ जगत में अन्य को। यह मान्यता अज्ञान है क्यों ज्ञानियों को मान्य हो? हैं सुखी होते दुखी होते कर्म से सब जीव जब । तू कर्म दे सकता न जब सुख-दुःख दे किस भांति तब ? हैं सुखी होते दुखी होते कर्म से सब जीव जब । दुष्कर्म दे सकते न जब दुख दर्द दें किस भांति तब ? ॥ हैं सुखी होते दुखी होते कर्म से सब जीव जब । सत्कर्म दे सकते न जब सुख-शांति दें किस भांति तब? जो मरे या जो दुखी हों वे सब करम के उदय से । "मैं दुःखी करता मारता' यह बात क्यों मिथ्या न हो?॥ जो ना मरे या दुखी ना हो सब करम के उदय से । 'ना दुखी करता मारता' यह बात क्यों मिथ्या न हो? ॥ मैं सुखी करता दुखी करता हूँ जगत में अन्य को। यह मान्यता ही मूढ़मति शुभ-अशुभ का बंधन करे ॥ १. समयसार पद्यानुवाद, बंधाधिकार, गाथा २५३ से २५९

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