________________
परिशिष्ट-१ उपादान-निमित्त दोहा
- कविवर पण्डित बनारसीदास
गुरु उपदेश निमित्त बिन उपादान बलहीन । ज्यों नर दूजे पाँव बिन चलवे को आधीन ॥१॥
हों जाने था एक ही उपादान सों काज । थक सहाई पौन बिन पानी मांहि जहाज ॥२॥
ज्ञान नैन किरिया चरण दोऊ शिवमग धार । उपादान निश्चय जहाँ तहाँ निमित्त व्यवहार ॥३॥
उपादान निजगुण जहाँ तहाँ निमित्त पर होय । भेदज्ञान परमाण विधि विरला बूझे कोय ॥४॥
उपादान बल जहाँ तहाँ नहिं निमित्त को दाव । एक चक्र सौं रथ चले रवि को यहै स्वभाव ॥५॥
सधै वस्तु असहाय जहाँ तहाँ निमित्त है कौन । ज्यों जहाज परवाह में तिरै सहज बिन पौन ॥६॥
उपादान विधि निरवचन है निमित्त उपदेश । वसे जु जैसे देश में धरे सु तैसे भेष ॥७॥