Book Title: Nimittopadan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 29
________________ द्वितीय खण्ड निमित्तोपादान : कुछ प्रश्नोत्तर आगम और परमागम के आलोक में किये गये उक्त अनुशीलन में निमित्त-उपादान का स्वरूप यद्यपि बहुत स्पष्ट हो गया है; तथापि कुछ प्रश्न आत्मार्थियों के चित्त को आंदोलित करते ही रहते हैं। उक्त प्रश्नों के यथासम्भव उत्तर भी यदि आगम और परमागम के आलोक में दिये जा सकें तो असंगत न होगा। __यह विचारकर ही इस प्रश्नोत्तर खण्ड में कतिपय महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के संदर्भ में ऊहापोह अपेक्षित है। (१) प्रश्न : जिसप्रकार जबतक पुत्र न हो, तबतक किसी को पिता कहना संभव नहीं है; उसीप्रकार जबतक कार्य न हो, तबतक किसी को कारण कहना भी संभव नहीं है; क्योंकि कार्य के बिना कारण किसका? पुत्रं के बिना पिता किसका? ऐसी स्थिति में विचारणीय बात यह है कि सम्यग्दर्शनरूप कार्य तो करणलब्धि के भी उपरान्त होता है और देशनालब्धिरूप कारण उसके बहुत समय पहले होता है। कम से कम अन्तर्मुहूर्त पहले तो होता ही है, अधिक से अधिक में तो भवपरिवर्तन (देह परिवर्तन) भी हो सकता है; क्योंकि ऐसा भी होता है कि देशना पूर्वभव में प्राप्त हुई हो और सम्यग्दर्शन उत्तरभव में उत्पन्न हो। ऐसे सम्यग्दर्शन को ही निसर्गज सम्यग्दर्शन कहते हैं। उक्त स्थिति में प्रश्न यह है कि यदि कार्य होने पर ही किसी को कारण माना जाय तो फिर सम्यग्दर्शनरूप कार्य का निमित्तकारण देशनालब्धि को अथवा गुरूपदेश को कैसे कहा जा सकता है?

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