Book Title: Nimittopadan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 32
________________ कुछ प्रश्नोत्तर 27 है ; तथापि किसी कामी को उन्हें देखकर कामभाव की उत्पत्ति हो गई हो, तो निमित्त-उपादान मीमांसा में तो उसे बहिरंग निमित्त कहा ही जायगा; पर सामान्यतः जिनबिम्ब को सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र का ही निमित्त कहा जाता है। सामान्य कथन और विशेष कथन के अन्तर को पहिचानना चाहिये। वैसे तो वेश्या विकार का ही निमित्त मानी गई है, पर किसी को वेश्या की वृत्ति देखकर वैराग्य हो जावे तो क्या वेश्याओं को वैराग्य का निमित्त मानकर उन्हें धर्मस्थानों में स्थान दिया जायगा? नहीं, कदापि नहीं; धर्मस्थानों में तो वैराग्य के निमित्तों के रूप में वीतरागी जिनबिम्बों को ही स्थापित किया जाता है और किया जाता रहेगा। (५) प्रश्न : आप कहें चाहे न कहें, पर वह वेश्या वैराग्य की निमित्त तो बन ही गई। इसीप्रकार वह वीतरागी नग्न दिगम्बर जिनबिम्ब भी विकार का निमित्त बन गया। उत्तर : उस कार्य में उसकी निमित्तता से कौन इन्कार करता है; पर जब सनिमित्तों की संगति में रहने की बात कही जायगी तो वैराग्य के लिये ज्ञानी धर्मात्माओं की संगति में रहने का ही उपदेश दिया जायगा; किसी वेश्या की संगति में रहने का नहीं। मुख्यतः तो सच्चे देव-शास्त्र-गुरु ही वैराग्य में निमित्त होते हैं, वेश्यादिक नहीं। वेश्या का वैराग्य में निमित्त बन जाना तो एक अपवाद है। अपवादों के अनुसार जगत का व्यवहार नहीं चलता। जिसके उपादान की जोरदार तैयारी हो, उसके लिये वेश्या भी वैराग्य का निमित्त बन जाती है। ऐसी घटनाओं से वेश्यारूप निमित्त की महिमा नहीं आना चाहिये, अपितु उपादान की विशेषता समझ में आना चाहिये, क्षणिक उपादान की महिमा आना चाहिये।

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