Book Title: Nimittopadan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 17
________________ निमित्तोपादान अत: सहजरूप से तो यही सिद्ध होता है कि सभी जीव और पुद्गल अपनी क्षणिक उपादानगत योग्यता के अनुसार चलते व ठहरते हैं और जबजब वे अपनी योग्यतानुसार चलते व ठहरते हैं, तब-तब धर्म और अधर्म द्रव्य निमित्तमात्र हो जाते हैं । 12 इसप्रकार कार्य के उत्पन्न होने के काल का नियामक कारण तो उपादानगत योग्यतारूप क्षणिक उपादान ही रहा; न तो त्रिकाली उपादान ही और न निमित्त ही । प्रश्न : क्या नियामक कारण भी अनेक प्रकार के हो सकते हैं? उत्तर : क्यों नहीं? अवश्य हो सकते हैं । प्रत्येक कार्य (पर्याय) का त्रिकाली उपादान इस बात का नियामक है कि यह कार्य (पर्याय) अमुक द्रव्य या उसके अमुक गुण में ही होगा, अन्य द्रव्य में नहीं और उसी द्रव्य के अन्य गुण में भी नहीं । सम्यग्दर्शनरूप कार्य आत्म द्रव्य और उसके श्रद्धा गुण में ही सम्पन्न होगा, पुद्गलादि द्रव्यों या आत्मा के ज्ञानादि गुणों में नहीं । अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय से युक्त द्रव्य का व्ययरूप क्षणिक उपादान विधि (पुरुषार्थ) का नियामक है। इस उपादान कारण से यह सुनिश्चित होता है कि यह कार्य इस विधि से, इस प्रक्रिया से ही सम्पन्न होता है, अन्य प्रकार से नहीं । तत्समय की योग्यतारूप क्षणिक उपादान काल का नियामक है। जिस द्रव्य या गुण में जिस समय जिस कार्यरूप परिणमित होने की पर्यायगत योग्यता होती है; वह द्रव्य या वह गुण उसी समय, उसी कार्यरूप परिणमित होता है। चूंकि कार्य का दूसरा नाम पर्याय अर्थात् काल भी है, यही कारण है कि काल के नियामक तत्समय की योग्यतारूप क्षणिक उपादान को कार्य का नियामक भी कहा जाता है। इसप्रकार यह सुनिश्चित हुआ कि स्वभाव का नियामक त्रिकाली उपादान, विधि (पुरुषार्थ - प्रक्रिया) का नियामक अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय

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