Book Title: Nimittopadan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 8
________________ एक अनुशीलन जिस पदार्थ में कार्य निष्पन्न होता है, उस पदार्थ को उपादानकारण और जो कार्य निष्पन्न हुआ है, उसे उपादेय कहा जाता है तथा निमित्तकारण की अपेक्षा कथन करने पर उसी कार्य (उपादेय) को नैमित्तिक भी कहा जाता है। इसप्रकार हम देखते हैं कि एक ही कार्य को उपादानकारण की अपेक्षा उपादेय और निमित्तकारण की अपेक्षा नैमित्तिक कहा जाता है। जो घटरूप कार्य मिट्टीरूप उपादानकारण का उपादेय कार्य है, वही घटरूप कार्य कुम्हाररूप निमित्तकारण का नैमित्तिक कार्य है । तात्पर्य यह है कि मिट्टी और घट में उपादान-उपादेय सम्बन्ध है तथा कुम्हार और घट में निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है। ___ यदि हम उसे सम्यग्दर्शनरूप कार्य पर घटित करें तो इसप्रकार कहना होगा - आत्मद्रव्य या उसका श्रद्धागुण उपादान है और सम्यग्दर्शन उपादेय है; इसीप्रकार मिथ्यात्व कर्म का अभाव अथवा सद्गुरु का उपदेश निमित्त है और सम्यग्दर्शन नैमित्तिक है। ___ यहाँ उपादेय शब्द का अर्थ 'ग्रहण करने योग्य' नहीं करना चाहिये; क्योंकि यह प्रकरण हेयोपादेय बतानेवाला प्रकरण नहीं है। यहाँ तो कार्यकारण सम्बन्धी प्रकरण होने से मात्र यह स्पष्ट किया जा रहा है कि जिस कार्य को निमित्त की अपेक्षा नैमित्तिक कहा जाता है, उसी कार्य को उपादान की अपेक्षा उपादेय कहा जाता है। इसप्रकार यह सुनिश्चित हुआ कि उपादान-उपादेय सम्बन्ध एवं निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध कारण-कार्य सम्बन्ध के ही रूप हैं, जो प्रत्येक कारण-कार्य सम्बन्ध पर अनिवार्य रूप से घटित होते हैं। इसप्रकार प्रत्येक कार्य नियमरूप से उपादेय भी है और नैमित्तिक भी है, उपादान की अपेक्षा उपादेय है और निमित्त की अपेक्षा नैमित्तिक है। यहाँ एक प्रश्न संभव है कि यदि 'द्रव्य या गुण' उपादानकारण हैं, जैसा कि सम्यग्दर्शनरूप कार्य के उदाहरण में बताया गया है, तो विवक्षित कार्य निरन्तर उत्पन्न होते ही रहना चाहिये; क्योंकि जब कारण उपस्थित है तो कार्य भी होना ही चाहिये।

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