Book Title: Nayadhamma Kahao
Author(s): N V Vaidya
Publisher: N V Vaidya

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Page 18
________________ -XVI.113] नायाधम्मकहाओ सामण्णपरियागं पाउणित्ता आलोइयपडिकते समाहिपत्ते कालमासे कालं किया उर्दू सोहम्मे जाव सव्वट्ठसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उवबन्ने । तत्थ णं अत्थेगइयाणं जहन्नमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पन्नत्ता। तत्थ णं धम्मरुइस्स वि देवस्स तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता । से गं धम्मरुई देवे ताओ देवलोगाओ जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ । ___(113) तं धिरत्थु णं अज्ज़ो ! नागसिरीए माहणीए अर्धनाए अपुण्णाए जाव निंबोलियाए जाए णं तहारूवे साहू साहुरूवे धम्मरुई अणगारे मासक्खमणपारणगंसि सालइएणं जाव गाढेणं अकाले चेष जीवियाओ ववरोविए । तए णं ते समणा निग्गंथा धम्मघोसाणं थेराणं अंतिए एयमढे सोचा निसम्म चंपाए सिंघाडग जाव पहेसु बहुजणस्स एषमाइक्खंति ४- धिरत्थु णं देवाणुप्पिया ! नागसिराए जाव निंबोलियाए जाए णे तहारूवे साहू साहुरूवे सालइएणं जीवियाओ ववरोविए। तए णं तेसिं समणाणं अंतिए एयमढे सोचा निसम्म बहुजणो अन्नमन्त्रस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ-धिरत्थु णं नागसिरीए माहणीए जाव जीवियाओ ववरोविए । तए णं ते माहणा चंपाए नयरीए बहुजणस्स अंतिए एयमटुं सोचा निसम्म आसुरुत्ता जाव मिसिमिसेमाणा जेणेव नागसिरी माहणी तेणेव उवागच्छंति २ नागसिरिं माहाणिं एवं वयासी-हं भो नागसिरी ! अपत्थियपत्थिए ! दुरंतपंतलक्खणे! हीणपुण्णचाउद्दसे ! धिरत्थु णं तव अधन्नाए अपुण्णाए निंबोलियाए जाए णं तुमे तहारूवे साहू साहुरूवे मासखमणपारणगंसि सालइएणं जाव ववरोविए उच्चावयाहिं अकोसणाहिं अकोसंति उच्चावयाहिं उद्धंसाहिं उद्धंसेंति उच्चावयाहिं निन्भच्छणाहिं निब्भच्छेति उच्चावयाहिं निच्छोडणाहिं निच्छोडेंति तजति तालेति तजित्ता तालित्ता सयाओ गिहाओ निच्छुभंति | तए णं सा नागसिरी सयाओ गिहाओ निच्छूढा समाणी चंपाए नयरीए सिंघाडगतियचउक्कचञ्चरचउम्महमहापहपहेसु बहुजणेणं हीलिजमाणी खिसिजमाणी निदिजमाणी गरहिजमाणी तिजिजमाणी पव्वहिज्जमाणी धिकारिज्जमाणी थुक्कारिज्जमाणी कत्थइ ठाणं वा निलयं वा अलभ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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