Book Title: Navpad Prakaranam
Author(s): Yashovijay Upadhyay, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 689
________________ तह मंततंतवावारजणियजणचित्तखोहाए ॥२२॥ जंकिंचि संचियं पावकम्ममिह तस्स घायणढाए । पडियागयसंवेगाए मज्झ वियरेसु पच्छित्तं ॥ २३ ॥ पडिवन्नं तं वयणं, गुरुणा आलोइए तओ तीए । ओणयसिराएं अभिवंदिऊण | पुण जंपियं एवं ॥ २४ ॥ नाह ! न दीहं कालं पव्वजं चत्तसयलसावजं । पाले उमहं सक्का पयच्छ ता अणसणं मझ ॥ २५॥ परिकम्मविऊण तओ थोवं कालं तयं तहा सव्वं । मताइ परिहराविय गुरुणा से अणसणं दिण्णं Nyn २६ ॥ लोगागरिसणहेउं आढत्ता पुणवि सुमरिउं विजं । तव्वसओ एइ जणो पुणोऽवि पुप्फाइवग्गka करो ॥ २७ ॥ सूरीहि तओ पुट्ठो पुव्वुत्तो साहुसाहुणीवग्गो । तुम्भेहि किंपि सिढे किमिमरस । जमेइ एस जणो? ॥ २८ ॥ तेणुत्तं नो अम्हहिं किंचि तो पुच्छिया हु सा चेव । भणइ मए गुरु विज्जाबलेण आगरिसिओ एइ ॥ २९ ॥ भणियं गुरूहिं अज्जे ! न जुत्तमेयं तओ पडिक्कंता । लोओ ठिओ य इंतो एवं जा तिण्णि वाराओ॥ ३०॥ काउं २ सम्म पडिकमिउं तं पयं चउत्थाए । वेलाए पुणो जंपइन पुन्वन्भासेण एसेइ ॥ ३१ ॥ तेण य अवियडिएणं कालगया सा ससल्लया चेव । एरावणग्गमहिसी जाया सोहम्मकप्पंमि ॥ ३२ ॥ इओ य-रायगिहनगर बहिया गुणसिलए चेइए महावीरो । रइयमि समोसरणे सुरेहिं सीहा Jain Education in For Private & Personel Use Only Ellw.jainelibrary.org

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