Book Title: Navpad Prakaranam
Author(s): Yashovijay Upadhyay, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 688
________________ श्रीनवर वृह द्रवृत्तौ संलेखनायां ॥ ३२९ ॥ Jain Education In तो मयहरी भणइ ॥ १० ॥ अज्जे ! तवस्सिणीयणविरुद्धरूवं विभूसबुद्धीए । जं कुणसि तुमं तं तुह अहिययरं दूसणं कुणइ ॥ ११ ॥ जओ -अच्छउ ता . अन्नजणो अंगे चिय जाइ पंच भूयाई । ताणं चिय लज्जिज्जइ पारद्धं परिहरंतेहिं ॥ १२ ॥ किंच - एक्कारससोत्तेहिं जं निश्च्चं मुयइ असुइमलमाई । तं सयखुत्तो घोयंपि | कह सुई होइ तुह देहं ? ॥ १३ ॥ एवमणुसासियाविहु न जाव परिहरइ सा तयं भावं । ताहे मंडलि बहिया विहिया | सा सेसरक्खट्टा ॥ १४ ॥ तंबोलपत्तनायं निदंसियं जेण समयकेऊहिं । अट्ठाणठवणअणवत्थमाइदोसा य भणिया | जं ॥ १५ ॥ सारणचइया य इमा समवायं अज्जियाण परिहरिउं । एगागिणिच्चिय ठिया सच्छंदा भिन्नवसहीए | ॥ १६ ॥ न य गणइ तहा जिणवरमयमि एगागिणीण अज्जाणं । पडिसिद्धमवत्थाणं तहाहि सिद्धंतवणंनि ॥ १७॥ तिहारेणं अज्जा भिक्खवियाराइए पडिसिद्धा । संकाइया य दोसा जेणित्थी पक्कवयरिसमा ॥ १८ ॥ कुणइ य | अपच्छंदा वसियरणुच्चाडणाइ लोयाणं । विज्जामंताईहिं पणयसिरो तेण य जणो सो ॥ १९ ॥ निच्चं न मुयइ पासं | देइ य आहारवत्थमाईयं । न य पडिकूलइ तीसे वयणं कइयावि विणयपरो ॥ २० ॥ अडवयाइकंतीऍ तीए एवं | दिणेसु जंतेसु । वेरग्गमुत्रगयाए विन्नत्तो वंदिऊण गुरू ॥ २१ ॥ भयवं ! सरीरउवगरणबउसभावेण भावियमणाए । 1 For Private & Personal Use Only दोषद्वारे सशल्यमरणे पण्डराय कथा ।। ३२९ ॥ www.jainelibrary.org

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