Book Title: Navpad Prakaranam
Author(s): Yashovijay Upadhyay,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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द्राध्यवसायो मृत्वोत्पन्नः सप्तमनरकपृथिव्यां त्रयस्त्रिंशत्सागरायुर्नारक इति ॥ समाप्तं संभूतिकथानकं, पाण्डरार्याकथानकं त्वेवम्___रायगिहे वरनयरे, आसि पसिद्धो सुदंसणो सेट्ठी । अण्णे सावत्थीए तरंगसेट्टि उवइसंति ॥ १ ॥ भूया a नामेण सुया, तस्सासि भणंति पोइणि अन्ने । वडकुमारीव न सा परिणीया कम्मदामेण ॥ २॥ अह अन्नया जिणिंदो पासो संजायकेवलो तत्थ । संपत्तो विहरंतो गामागरमंडियं वसहं ॥३॥ रइयमि समोसरणे सुरेहिं| सीहासणोवविट्ठो सो। धम्मं कहेइ भयवं ससुरासरमणुयपरिसाए ॥४॥ एत्थंतरंमि पत्ता वडकुमारीवि सह नियपिऊहिं । पासस्स समोसरणं, सुणिऊण तहिं च धम्मकहं ॥ ५॥ उल्लसियजीव रियवसेण उप्पन्नचरणपरिणामा । आपुच्छिऊण पियरो महया इट्टीएँ निक्खंता ॥ ६॥ चिट्ठइ य पासजिणसीसिणीए पासंमि पुप्फचलाए। कम्मोदएण कइयवि, जाओ से बउसपरिणामो ॥ ७ ॥ पत्तंमि गिम्हसमए पयट्टसेउल्लजल्लगंधं सा। असहंती पक्खालइ जलेण निययंगुवंगाई॥८॥ अविहीए अकालंमि 'धोयइ वत्थाइ परिहई य तहा । निच्चं पंडरचीरे तो जाया पंडरज्जा सा ॥ ९॥ एयं च तीए चेटू द8 सेसाओं अज्जियाओं तयं । वारंति सा य न गणइ ताओ।
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