Book Title: Navpad Prakaranam
Author(s): Yashovijay Upadhyay, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 690
________________ श्रीनव०बृह- वृत्ती । संलेखनायो .३३०॥ सणनिसण्णो ॥ ३३ ॥ धम्मं कहेइ भयवं सदेवमणुयासुराए परिसाए । तं ओहीए आभोइऊण सा आगया दोषे पंड रार्या कथा तत्थ ॥ ३४ ॥ वंदित्तु भावसारं हत्थिणिरूवं विउव्विउं पच्छा । धम्मकहाअवसाणे छेरती देसए नढें ॥ ३५ ॥ णार |एत्थंतरंमि पुच्छइ जाणंतुवि गोयमो जिणं पयओ। किं सामि ! इमं ? सामीऽवि कहइ तो नीऍ पुवभवं ॥ ३६॥ | गा.१३३ भणइ य अन्नो थेवं मा काही साहसाहणीमज्झे । मायं तेणेवमियं छेरता दसई नटुं॥ ३७ ॥ अण्णे भणंति मया सद्देणं वायकम्ममोक्खं सा । कुणमाणा नट्टविहिं पदसिया तत्थ पसिणाई ॥ ३८ ॥ तो गोयमेण पुणरवि पुढे कइया णु पाविही मोक्खं ? । भणियं जिणेण एत्थं पालिय पलिओवमं आउं ॥ ३९ ॥ एत्तो चुया विदेहे| मणुयत्तं पाविऊण बोहिं च । सासयसोक्खं मोक्खं पाविस्सइ गोयमा एसा ॥ ४० ॥ इति पण्डुरार्याकथानकं समाप्तम् ॥ अत्र च संभतिसाधनिंदानशल्ययोगेन पण्डरार्यायाश्च शल्यसम्बन्धेन बालमरणात् दुःखपरम्परेति विज्ञाय । बालमरणपरिहार एव यतितव्यमित्युपदेशगों दोषद्वारगाथाभावार्थः ॥ सम्प्रति गुणद्वारं, तत्रेयं गाथा एकं पंडियमरणं छिंदइ जाईसयाई बहुयाई । दिलुतो महसयगो मंडुक्को नंदजीवो वा ॥ १३३ ॥ For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org in Eden in

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