Book Title: Muze Narak Nahi Jana
Author(s): Vimalprabhvijay
Publisher: Vimalprabhvijayji

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Page 5
________________ अवधिज्ञान नरकमें ४ गाउका, पहेलीमें, और अंतिममे सातवीका १ गाउका होता है। नरकभूमि कैसी ??? नरकभूमि दातुण और करवत जैसी कर्कश होती है। भूमि का स्पर्श अत्यंत दुःख दायी होता है। ये नरकभूमिमें काली अमासकी रात्री से भी ज्यादा भयानक अती भीषण और तीव्र अंधकार होता है। प्रकाश का तो नामोनिशान नहिं । वहाँ कोई खिडकीयाँ वेन्टीलेशन भी नहीं। लिमडे की गला जैसी, दुनियाकी कडवेसे भी कडवी चीज से ज्यादा अनंत गुणी कडवाश भूमि रही है। ___ दूर दूर तक, चोमेर लीट, बळखा पीशाब और विष्ठा जैसी दुर्गंधमय पुदगलो फैले हुए होते है। जहाँ भी पैर रखो वहा खून-चरबी जैसी अशूचि पदार्थ रहती है । स्मशानकी जैसी यहाँ चारे दिशा में मांस-हड्डीयाँ ढग रहेती है। खून की जैसी तो नदीयाँ बहती है। सडी हुई मुर्दो से भी अधिक दुर्गंध मारती है। ऐसी दुर्गंध मनुष्य से सहन नहीं किया जा सकता है। अरे, ये दुर्गंध की बदबु मात्र एकही कण जो मनुष्यलोकमें मुंबई से कलकता जैसी बस्तीवाले ऐसे बडे शहर में लाकर रखा जाए तो पूरा का पूरा मनुष्य खतम हो जाता । एक भी मनुष्य जिंदा न रहता । मनुष्यतो क्या ? कुते-बिल्ली-चुहे जैसे प्राणी भी ये बदबू से जिंदा न रहे। __नारको जीवो को वेदनापीडा-दुःख : घोर असह्य कम्मरतोड वेदना-पीडाओ नारकीके जीवो के लिये झीक रही है। उससे अत्यंत त्रास से नारकीओ कान के पडदे फाड देते, पत्थर जैसी बडी शीलाको फाड दे ऐसे आवाज निकालते है। पूरा आकाश आक्रंद करता हो ऐसा लगता है। वह जीव जोर जोर से बूम मार रहे है। उनके अश्रु तो सुकते ही नहीं है। लेकिन वहाँ कौन बचाए ? जीवमात्रको पापसे और दुःख से बचानेवाला धर्म है। धर्म की उपेक्षा करके जो पाप किए है उसका ही यही घोर परिणाम है। ओ माँ! मर गया ! ओ बाप रे! सहा नहीं जाता ! बचावो बचावो ! मेरे उपर दया किजिए ! मेरा कत्ल न करो ! ऐसी अनेक दयासे भरी विनंती से भरी वातें परमाधामी के पैर में गिरके करते है। अच्छे से अच्छे लोगो के रोंगटे खड़े हो जाए, हृदय जम जाए, शरीर काप उठे रक्त रुक जाऐ ऐसी कारमी वेदनाएँ नारकी के जीवों को सहन करनी पड़ती है। परंतु वहाँ कोई उसे सुननेवाला भी नहीं है और कोई बचानेवाला भी नहीं है। पिछले भवों में हमने जो हँसते हँसते पाप किए है उसे रोते रोते भुगतना ही पड़ता है। नए-नए क्रोध कषाय और धमधमाट से पुन: नए कर्म बंधाते ही रहते है। और उसके फल स्वरूप बार बार वेदनाए भुगतने की परंपरा चलती ही रहती है। नरक के जीवों को तीन प्रकार की वेदना होती है... (१) क्षेत्र - कृत वेदना (२) परमाधामी कृत वेदना (३) अन्योन्य कृत वेदना। क्षेत्र-कृत वेदना : दश प्रकार के तत्वार्थ सूत्र में दर्शाया (१) भूख की वेदना इतनी सखत होती है कि एक नारकीय जीव पूरी दुनिया का सब अनाज, फल, फुल, मिठाई वगेरे खानेलायक सब चीजो खा ले फिर भी उनकी भूरव शांत नहीं होती, परंतु बढती जाती है। ऐसी अति सख्त भूरवमें भड़भडते, पुकार करते खुद बहुत बड़े आयुष्य को पूर्ण करते है। (२) प्यास की वेदना बहुत ही भुगतनी पड़ती है । दुनियाभरके सब कुछ वाव, तालाब, सरोवर, नदीयाँ, कुओ, कुंडे, सागर का पानी एक नारकी जीव पी ले फिर भी उसकी तरस छीपती नहीं है। उसका कंठ, तालवा, जीभ और अधर हमेशा सूक जाते है। दुःख टालने की कोशिश करते है। वैसे वैसे दुःख बढ़ता ही जाता है।

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