Book Title: Muni Shree Gyansundarji
Author(s): Shreenath Modi
Publisher: Rajasthan Sundar Sahitya Sadan

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Page 14
________________ (८) छन्द और कवित्त तो आप को पहले ही से खूब याद थे । श्राप नित्य व्याख्यान भी दिया करते थे जो श्रोताओं को अति मनोहर प्रतीत होता था । वाक्पटुता का गुण आप में स्वभाव से ही विद्यमान है । झामूणिया से विहार कर के आप रामपुरा तथा भानपुरा होते हुए बूंदी और कोटे की ओर पधारे कारण पूज्यजी का विहार पहले से ही उस तरफ हो चुका था। पश्चात् वहाँ से आप फूलीया केकडी होते हुए ब्यावर पधारे । ब्यावर से निम्बाज, पीपाड, बीसलपुर आये और अपने कुटम्बियों से आज्ञा की याचना की पर उन्होंने आज्ञा न दी तो वहाँ से जोधपुर पाए यहाँ आप के सुसरालवाले तथा आप की पूर्व धर्मपत्नी राजबाई वगेरह आई और अनेक प्रकार से अनुकूल प्रतिकूल परिसह दिये पर आप को उस की परवाह ही नहीं थी वहाँ से आप तिवरी तक पर्यटन कर पीछे ब्यावर पधार गये । ब्यावर से आप सोजत पधारे। इस भ्रमण में भी आप एकान्तर की तपस्या निरन्तर करते रहे । आप को अपने कुटुम्वियों की ओर से अनेक परिसह दिये गये पर आप अपने पथ से विचलित नहीं हुए । ज्याँ ज्याँ श्राप कष्टों की परीक्षा में तपाए गये आप सच्चे स्वर्ण प्रतीत हुए । इस समय की अनेक घटनाऐं जो आपश्री की अतुल धैर्यता प्रकट करती है स्थानाभाव से यहाँ नहीं लिखी जा सकती यदि अवसर मिला तो फिर कभी आपश्री का चरित्र विस्तृत रूप से पाठकों के समक्ष रखने का प्रयत्न किया जायगा । इस परिचय में केवल चतुर्मासों का संक्षिप्त वर्णन मात्र Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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