Book Title: Muni Shree Gyansundarji
Author(s): Shreenath Modi
Publisher: Rajasthan Sundar Sahitya Sadan

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ दिया उसी प्रकार तपस्या में भी अपूर्व वृद्धि की। आपने यकायक मासखमण तप का आराधन निर्विघ्नपूर्वक किया । इस के साथ तेले ३ तथा एक मास तक एकान्तर तप किया। सचमुच कर्म काटने को कटिबद्ध होकर आपने अलौकिक वीरता का परिचय दिया। _व्याख्यान के अन्दर आप भावनाधिकार पर सुमधुर वाणी से श्रोताओं के शंकानों की खूब निवृति करते थे। इस वर्ष अपने भाधे चातुर्मास अर्थात् दो मास तक धारा प्रावादिक उपदेश दिया। जोधपुर नगर से विहार करके आप सालावास, रोहट, पाली, बूसी, नाडोल, नारलाई, देसूरी होकर पुन: पाली पधारे । वर्ष के शेष महीनों में आपने सोजत, सेवाज बगड़ी चण्डावल जेतारण तथा बलूदा और कालू में पधार कर ज्ञानोपार्जन तथा तपश्चर्या करते हुए भी उपदेशामृत का पान कराया । विक्रम सं. १९६७ का चातुर्मास ( कालू)। इस बार आपने चतुर्थ चातुर्मास कालू (मानन्दपुर ) में अकेले ही किया । इस प्रकार अकेले रहने का कारण विशेष था । आत्मकल्याण के हित ही आपने इस प्रकार की योजना की थी । इस चातुर्मास में भी आप का ज्ञानाभ्यास पहले की तरह जारी था । आपने २५ थोकड़े निशीथसूत्र व्यवहारसूत्र वगैरह इस वर्ष भी कण्ठस्थ किये तथा निम्नलिखित आगमों का अध्ययन तो मनन पूर्वक किया-उपवाईजी, रायपसेणीजी, जम्बू Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78