Book Title: Muni Shree Gyansundarji
Author(s): Shreenath Modi
Publisher: Rajasthan Sundar Sahitya Sadan

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ ( २३ ) -सम्बन्ध में त्रिषट्शलाका पुरुष चरित्र, जैनकथा रत्नकोष भाग भाठ उपदेश प्रासाद भाग पाँच तथा वर्धमान देशना नामक ग्रंथों का भी अध्ययन कर डाला अर्थात् उस चातुर्मासमें लगभग एक लक्ष प्रन्थों का अध्ययन किया था तिस पर भी तपस्या इस प्रकार जारी रही थी । पञ्च उपवास १, तेले ३ तथा ज्ञानाभ्यास के साथ तपश्चर्या का कार्य इस वर्ष रुग्ण रहे थे । भी फुटकल तप । इस प्रकार जारी था, यद्यपि प्राप व्याख्यान में आपश्री रायपसेणीजी सूत्र बांच रहे थे । कई वकों ने रतलाम पूज्यजी के पास प्रश्न भेजे किन्तु पूज्यजी की मोर से अमरचंदजी पीतलियाने ऐसा गोलमोल उत्तर लिखा कि जिससे लोगों की अभिरूचि मूर्त्ति पूजा की ओर झुक गई । - सादड़ी छोटी के गाँवों में होते हुए श्राप गंगापुर पधारे जहाँ कर्मचंदजी स्वामी विराजते थे । श्रागे ६ साधुओं सहित प्राप देवगढ़ बला कुकडा होते हुए ब्यावर पधारे । यहाँ पर भी मूर्ति पूजा का ही प्रसंग छिड़ा । इस के बाद आप बर, बरांटिया निंबाज, पीपाड़, बिसलपुर होते हुए जोधपुर पधारे | आप के व्याख्यान में मूर्ति पूजा सम्बन्धी प्रश्नोत्तर ही अधिक होने लगे । इस चर्चा में आपने साफ़ तौर पर फरमा दिया कि जैन शास्त्रों में स्थान स्थान मूर्त्ति पूजा का विधान और फल बतलाया है । अगर किसी को देखना हो तो मैं बतलाने को तैय्यार हूँ। अगर उस सूत्रों के मूल पाठ क न माने या उत्सूत्र की परूपना करने वालों को मैं मिथ्यात्वी समझता हूँ उनके साथ मैं किसी प्रकार का व्यवहार | रखना भी नहीं चाहता हुँ यह विषय यहाँ तक चचीं गई कि आप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78