Book Title: Muni Shree Gyansundarji
Author(s): Shreenath Modi
Publisher: Rajasthan Sundar Sahitya Sadan

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Page 38
________________ (३२) १००० चौराशी आशातना। १००० व्याख्याविलास प्रथम भाग । १००० आगमनिर्णय प्रथमांक । १००० शीघ्रबोध प्रथम भाग । १००० चैत्य वंदनादि । १००० , द्वितीय भाग । १००० जिन स्तुति । १००० , तृतीय भाग | ५०० सुखविपाक मूल सूत्र । १२००० कुल प्रतिएं। ___ इस चतुर्मास में शापश्रीने इस प्रकार तपस्या की । अठाई १, पचोला १, तेले ११ । धन्य! आप कितनी निर्जरा करते हैं। जहाँ भाप साहित्य सुधार के कार्य में संलग्न रहते हैं वहाँ काया की भी परवाह नहीं करते। मारवाड़ी जैन समाज को सरल ज्ञान द्वारा ऐसें महात्माओंने ही जगृत किया है । इन के जीवन के प्रत्येक कार्य में दिव्यता का आविर्भाव दिख पड़ता है। - सूरत से विहार कर गुरुमहाराज की सेवा में आप कतारप्राम, कठोर, झगड़ियाजी तीर्थ आये, वहाँ से श्रीसिद्धगिरि की यात्रार्थ गुरुश्री से आज्ञा लेके अंकलेसर, जम्बुसर, काबी, गंधार, भडूंच, खम्भात् , धोलका, वला, सीहोर, भावनगर और देव होते हुए श्रीपालीताणाजी पधार कर सिद्धगिरि की यात्रा कर आपने मानवजीवन को सफल किया । जो सुरत में आपने मेझरनामा लिखना प्रारंभ किया था वह अनुभव के साथ इसी पवित्र तीर्थ पर समाप्त किया था। फिर हमारे चरित नायकजी अहमदाबाद होते हुए खेड़ा मात्र में सदुपदेश सुनाते हुए पुनः झगड़ियाजी पधार गुरु महाराज की सेवा करने लगे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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