Book Title: Muni Shree Gyansundarji
Author(s): Shreenath Modi
Publisher: Rajasthan Sundar Sahitya Sadan

View full book text
Previous | Next

Page 63
________________ पधारे । यहाँ अठाई महोत्सव तथा खारीया में वरघोड़ा आदि का अपूर्व ठाठ हुआ । कई श्रावक संवेगी हुए । बीलाड़ा में स्थानकवासियों को प्रश्नोत्तर में पराजित करते हुए सिंघवीजी नथमलजी को मूर्तिपूजक श्रावक बनाया । बाद कापरडा की यात्रा का लाभ लेकर आप श्री पीपाड़ पधारे । विक्रम संवत् १९८३ का चातुर्मास (पीपाड़ )। चरित्रनायकजी का बीसवाँ चातुर्मास पीपाड़ में बड़े समारोह सहित हुआ । ब्याख्यान में भाप पूजा प्रभावना वरघोड़ादि महामहोत्सवपूर्वक श्री भगवतीजी सूत्र इस ढंग से सुनाते थे कि सर्व परिषद प्रानन्दमग्न हो जाती थी। श्रोताओं के मनपर व्याख्यान का पूग प्रभाव पड़ता था क्योंकि श्राप की विवेचन शक्ति बढ़ी चढ़ी है । उन की सदा यही अभिलाषा बनी रहती थी कि श्रापश्री भविछन्न रुप से धाग प्रवाह प्रभु देशना का अमृत प्रास्वादित कगते रहें । वक्तृत्व कला में श्राप परम प्रवीण एवं दक्ष हैं | श्राप की चमत्कारपूर्ण वाग्धाराऐं श्रोता को आश्चर्यचकित कर देती है । इस वर्ष में आपने तेला १ तथा छठ ३ के अतिरिक्त कई उपवास किये थे । आप के उपदेश के फलस्वरूप पीपाड में तीन संस्थाएं स्थापित हुई (१) जैन मित्र मण्डल । (२) ज्ञानोदय लाइब्रेरी तथा (३) जैन श्वेताम्बर सभा । इन तीनों को स्थापित कराकर आपने स्थानीय जैन समाज के शरीर में संजीवनी शक्ति फूंक दी। इन तीनों सभाओं द्वारा जनता में अच्छी जागृति दृष्टिगोचर होती थी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78