Book Title: Muni Shree Gyansundarji
Author(s): Shreenath Modi
Publisher: Rajasthan Sundar Sahitya Sadan

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Page 60
________________ (५४) मण्डप फुलवादीसे छाया | छवि को देख मन ललचाया। प्रदिक्षणा दे दे आनन्द पाया । भवकी फेरी मिटानेवाले । वं. ७ मूल नायक भगवान् । विराजे शांति सुधारस पान । पूजा गावे मिलावे तान । भवजल पार लगानेवाले । वं. । ८ । नित्य नई अंगी रचावे । दर्शन कर पाप हटावे । नरनारी मिल गुण गावे । समकित गुण प्रगटानेवाले । वं. । ६ । स्व परमत जन बहु भावे । दुनियाँ मन्दिर में न समावे । नौबत वाजा धूम मचावे । कर्मों को मार लगानेबाले । वं.। १० । संघमें हो रहा जय जयकार | गुणोंसे गगन करे गुंजार । यात्रि भावे लोग अपार। महात्मा " लाल" कहानेवाले । वं.।११। चातुर्मास के पश्चात् विहार कर आप मूंडवा हो कर कुचेरे पधारे । वहाँपर न्याति सम्बन्धी जीमनवारों में एक दिन पहले भोजन तैयार कर लिया जाता था तथा दूसरे दिन बासी भोजन काम में लाया जाता था। यह रिवाज आपने दूर करवाया । पाठशाला के विषय में भी खासी चर्चा चली थी। खजवाने जब श्राप पधारे तो उपदेश के फलस्वरूप जैन ज्ञानोदय पाठशाला तथा जैन मित्र मण्डल की स्थापना हुई। वहाँ से आप रूण पधारे । यहाँ श्री ज्ञान प्रकाशक मण्डल की स्थापना हुई। वहाँ से जब आप फलोधी तीर्थपर यात्रार्थ पधारे तो मारवाड़ तीर्थ प्रबन्धकारिणी कमेटी की बैठक हुई थी और उस कार्य में ठीक सफलता भी मिली थी। जब आप कुचेरे के भावकों के आग्रह करने पर वहाँ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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