Book Title: Muni Shree Gyansundarji
Author(s): Shreenath Modi
Publisher: Rajasthan Sundar Sahitya Sadan

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Page 13
________________ (७) शीघ्र दीक्षा ग्रहण करलूँगा। अब संसारके बन्धनों से उन्मुक्त होके रहूँगा । आर सपत्नि वैराग्य भावना के कारण करीबन २ मास रतलाम में ठहर गये और धार्मिक अभ्यास में तल्लीन हो गये। यह बात आप के मातुश्री आदि कुटुम्ब के कानों तक पहुँचते ही उन्हें को महान् दुःख पैदा हुआ इस पर तारद्वारा सूचित कर गणेशमलजी को रतलाम भेजा और उन्होंने अनेक प्रकार से समझा के माप को घर पर लाना चाहा पर आप का वैराग्य ऐसा नहीं था कि वह धोने से उतरजाता या फीका पड़जाता आखिर गणेशमलजी के विवाह तक दीक्षा न लेने की शर्तपर गयवरचन्द्रजी तो पूज्यजी के पास में रहे और गणेशमलजी अपनी भावज को ले कर बीसलपुर श्रागये । संसार की असारता आयुष्य की अस्थिरता और परिणामों की चञ्चलता आप से छीपी हुई नहीं थी जैसे जैसे आप शानाभ्यास बढ़ाते गये वैसे वैसे वैराग्य की धारा भी बढ़ती गई फिर तो देरी ही क्या थी ? आपने अपना मनोर्थ सिद्ध करने के लिये पाखिर संवत् १९६३ के चैत्र कृष्णा ६ को नीमच के पास मामूणिया ग्राम में स्वयं दीक्षान्वित हो गये । आपने अपने अनवरत एवं अविरल उद्योग के कारण शीघ्र ही दसवैकालिक सूत्र, सुखविपाक सूत्र और उत्तराध्ययनजी सूत्र का अध्ययन कर लिया। साथ में परिश्रम कर के आपने लगभग १०० बोकड़े भी कण्ठस्थ कर लिये। इस के अतिरिक्त बोल चाल थोकड़े, ढाल, चौपाई, स्तवन, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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