Book Title: Mata Pita Aur Bachho Ka Vyvahaar Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Mahavideh Foundation View full book textPage 6
________________ गुस्से की मार को बालक न भूलेंगे; पिता से भी सवाये गुस्सैल बनेंगे। घर-घर प्राकृतिक खेत थे सतयुग में; भिन्न भिन्न फूलों के बाग़ हैं कलियुग में। माली बनो तो, बाग ये सुन्दर सजे; वर्ना बिगड़कर कषायों को भजे। करना नहीं कभी भी बेटी पर शंका, वर्ना सुनना पड़ेगा, बरबादी का डंका। उत्तराधिकार में बच्चों को दें कितना? अपने पिता से मिला हो हमें जितना। फिजूलखर्च बनेगा जो दोगे ज्यादा; होकर शराबी छोड़ देगा मर्यादा। करोगे बच्चों पर राग जितना, बदले में होगा द्वेष फिर उतना! राग-द्वेष से छूटने को हो जाओ वीतराग; भवपार करने का बस एक यही मार्ग! मोक्ष हेतु निःसंतान होना महापुण्यशाली; गोद नहीं खाली परन्तु है बही खाली! किस जन्म में, जन्मे नहीं बच्चे? अब तो शांत हो, बनो मुमुक्षु सच्चे। माता-पिता संतान के संबंध हैं संसारी; वसीयत में दिया नहीं कुछ, आई कोर्ट की बारी। डाँटो दो ही घण्टे तो टूटे यह संबंध! ये तो हैं स्मशान तक के संबंध! नहीं होते कभी अपनी नज़र में बच्चे एक समान राग-द्वेष के बंधन का यह है सिर्फ लेन-देन। आत्मा सिवा संसार में कोई नहीं है अपना, दुःखे देह और दाँत, हिसाब अपना-अपना। हिसाब चुकाने में जोश न होवे मंदा, समझकर चुका दे, वर्ना है फाँसी का फंदा! कहते हैं, माँ को तो बच्चे सभी समान; राग-द्वेष हैं मगर, लेन-देन के प्रमाण। माता-पिता एक, पर बच्चे अलग-अलग; वर्षा तो है समान पर बीज अनुसार फसल। कुदरत के कानून से एक परिवार में मिलाप; समान परमाणु ही खिंचें अपने ही आप! मिलते हैं, द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव; घटना घटे 'व्यवस्थित'का वही स्वभाव! श्रेणिक राजा को पुत्र ने ही डाला जेल में; पुत्र के डर से ही हीरा चूसकर मरे वे! आत्मा का कोई नहीं पुत्र यहाँ; छोड़कर माया परभव सुधारो यहाँ!Page Navigation
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